भूलकर मतभेद को,
मिलाप का पैग़ाम दूँ।
अहंकार का संहार कर,
विनम्रता और प्यार दूँ।
सीखकर हर हार से,
विजयी उद्घोष कर दूँ।
त्याग दूँ तनाव को,
शक्ति का संचार भर दूँ।
दूरी बनाऊँ गुरूर से,
नादानी से तौबा करूँ।
हर बूँद मेरे नेत्र की,
बहाऊँ मैं परोपकार में॥
पराक्रम के प्रवाह में,
ऊपर रहूँ पक्षपात से।
नींव रख दूँ जीत की,
रक्षा महज़ इंसान की।
ऊर्जा नई संगीत की,
नवगीत की हर गीत में।
हर राग में परित्याग हो,
परमार्थ की सुर ताल में।