ज़ख़्म
अंकुर मिश्रा
अब किसी पे ये दिल नहीं आने वाला
चोट गहरी है ये ज़ख़्म नहीं भरने वाला
बेकार ही उम्मीद लगाए बैठे हो मुझसे बशर
मैं वफ़ा अब ख़ुद से भी नहीं करने वाला
मर गई है रूह सौदा जिस्म का करते करते
मेरे हिस्से सिवा दर्द के और कुछ नहीं आने वाला