कहानी
अंकुर मिश्रा
अपनी ही कहानी में किरदार अपना पता नहीं
क्यों चल रही हैं ये साँसें मुझे यार कुछ पता नहीं
शब ओ शहर ये जानें कहाँ खोए रहते हैं
किसका है ये ख़्याल मुझे यार कुछ पता नहीं
जानें कबसे यूँ ही तन्हा कितनी रातें गुज़र गईं
उस शब-ए-जुदाई के बाद का मुझे यार कुछ पता नहीं