होकर जुदा तुझसे
अंकुर मिश्रा
होकर जुदा तुझसे रह नहीं पाएँगे
बिखर जाएँगे सम्भल नहीं पाएँगे
हो जाएगी अज़ाब ये ज़िंदगी मेरी
बिन तेरे हम जी नहीं पाएँगे
है क़सम तुझे तू मत जा उठकर मेरे पहलू से
टूट जाएँगे ख़्वाब मेरे हम सो नहीं पाएँगे
बहुत लम्बा सफ़र कर के पहुँचे हैं यहाँ तक
हम अश़्कों को अपने अब रोक नहीं पाएँगे
तू आकर के थाम ले अब हाथ मेरा ए सनम
हम यूँ अकेले ज़्यादा दूर चल नहीं पाएँगे
हो जाएँगे फ़ना कर लेंगे ख़ुदकुशी हम मगर
दूर तुझसे अब और नहीं पाएँगे
जो तू नहीं आया अब के सावन लौट के तो
देखना भीग हम भी नहीं पाएँगे