टूटा होगा
अंकुर मिश्रा
हज़ारों दफ़ा टूटा होगा
जाने किस किस के हाथ से छूटा होगा
मैं क्यों लाऊँ नाम किसी का ज़ुबाँ पे अपनी
किसी अपने ने ही दोस्त बनकर लूटा होगा
यूँ ही नहीं धड़कता अब भी सीने में ये दिल मेरा
कोई जाकर शायद वापस लौटा होगा