ख़ामोश

01-10-2023

ख़ामोश

अंकुर मिश्रा (अंक: 238, अक्टूबर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)


आँखें नम लब ख़ामोश हुए जाते हैं
उनसे मिल के भी हम मिल नहीं पाते हैं
 
हर शख़्स हर साया मुझे मेरा दुश्मन लगता है
उन्हें छूकर गुज़रें ये हवाएँ भी हम ये सह नहीं पाते हैं
 
हर साँस हर धड़कन मेरी बेचैन हो उठती है
जब कोई पूछे नाम उसका और हम बता नहीं पाते हैं

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