ख़ामोश
अंकुर मिश्रा
आँखें नम लब ख़ामोश हुए जाते हैं
उनसे मिल के भी हम मिल नहीं पाते हैं
हर शख़्स हर साया मुझे मेरा दुश्मन लगता है
उन्हें छूकर गुज़रें ये हवाएँ भी हम ये सह नहीं पाते हैं
हर साँस हर धड़कन मेरी बेचैन हो उठती है
जब कोई पूछे नाम उसका और हम बता नहीं पाते हैं