सफ़र
अंकुर मिश्रा
सफ़र ये ख़त्म होने वाला नहीं है
क़ाफ़िला ये रुकने वाला नहीं है
किस बात का गिला करें किससे
यहाँ कोई सुनने वाला नहीं है
घर से लेकर मरघट कि इस दौड़ में साहेब
कोई साथ किसी के चलने वाला नहीं है
ख़ुद ही तय करना है सबको ये सफ़र अकेले
कोई साथ किसी के मरने वाला नहीं है