बिंदिया
अंकुर मिश्रा
कभी ख़ैरियत हमारी पूछा करो
कभी हाल अपना बताया करो
कभी तो छोड़ ये गिले शिकवे
तुम पहले कि तरह मिलने आया करो
होंठों पे हँसी आँखों में काज़ल
बालों में गजरा लगाया करो
सुनो ये साड़ी तुमपे बहुत जचती है
माथे पे एक बिंदिया भी लगाया करो