तेजपाल सिंह ‘तेज’ के ग़ज़ल संग्रह ‘कौन दिशा में उड़े चिरैया’ पर परिचर्चा गोष्ठी

01-12-2024

तेजपाल सिंह ‘तेज’ के ग़ज़ल संग्रह ‘कौन दिशा में उड़े चिरैया’ पर परिचर्चा गोष्ठी

तेजपाल सिंह ’तेज’  (अंक: 266, दिसंबर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

ग़ज़लशाला

तेजपाल सिंह ‘तेज’ की गज़लें मुख्यतः जन-सरोकार और जनतांत्रिक मूल्यों की ग़ज़लें हैं: डॉ. कुसुम वियोगी


प्रस्तुति: डॉ. गीता कृष्णांगी

पुस्तक: कौन दिशा में उड़े चिरैया
लेखक: तेजपाल सिंह ‘तेज’
प्रकाशक: बुक रिवर्स, लखनऊ (उ.प्र.) 
वेबसाइट: www.bookrivers.com
प्रकाशक ईमेल: publish@bookrivers.com
प्रकाशन वर्ष: 2023 
पृष्ठ: 150
मूल्य: ₹210/-
Book available: Flipkart, Amazon and Amazon Kindle

नव दलित लेखक संघ, दिल्ली ने ग़ज़लशाला नाम से विविध ग़ज़ल संग्रहों पर एकवर्षीय परिचर्चा सत्र शुरू किया है। इसका उद्देश्य, हिंदी और हिंदीतर ग़ज़ल में अंबेडकरवादी स्वर की तलाश करना और अंबेडकरवादी ग़ज़ल का एक निश्चित स्वरूप निर्धारित करना है। पूरे सत्र में कुल बारह या उससे अधिक ग़ज़ल संग्रहों पर ऑनलाइन परिचर्चा/गोष्ठी आयोजित की जाएँगी ताकि इनके आधार पर अंबेडकरवादी ग़ज़ल की बेसिक पहचान की जा सके और उसके ज़रूरी मानदंड तय किए जा सके। 

यथोक्त के आलोक में ग़ज़लशाला की शुरूआत करते हुए नव दलित लेखक संघ द्वारा सर्वप्रथम 27.10.2024 को तेजपाल सिंह ‘तेज’ के ग़ज़ल संग्रह ‘कौन दिशा में उड़े चिरैया’ पर ऑनलाइन परिचर्चा/ गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संग्रह तेजपाल सिंह ‘तेज’ की प्रतिनिधि ग़ज़लों का संकलन है, जिनका संकलन और संपादन वरिष्ठ ग़ज़लकार हरेराम नेमा समीप द्वारा किया गया है। 

परिचर्चा में भाग लेने वाले वक्ताओं में माननीय हरेराम नेमा समीप, डॉ. कुसुम वियोगी और इंद्रजीत सुकुमार रहे। लेखकीय वक्तव्य हेतु तेजपाल सिंह ‘तेज’ और ‘ग़ज़ल, कल और आज’ विषय पर पेपर प्रस्तुत करने हेतु लोकेश कुमार उपस्थित रहे। विशेष टिप्पणी करने वालों में आर.पी. सोनकर और डॉ. अमित धर्मसिंह का नाम उल्लेखनीय रहा। गोष्ठी की अध्यक्षता बंशीधर नाहरवाल ने की और संचालन नव दलित लेखक संघ की सहसचिव सलीमा अली ने किया। उल्लेखनीय है कि उक्त के अतिरिक्त गोष्ठी में देश भर से सैकड़ों साहित्यकारों ने ऑनलाइन परिचर्चा में उपस्थित दर्ज कराई। 

सर्वप्रथम डॉक्टर अमित धर्मसिंह ने लेखक और अतिथि वक्ताओं का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया और बताया कि “इस सत्र के पूरा होने के बाद तमाम परिचर्चित ग़ज़ल संग्रहों की समीक्षाओं, कुछेक प्रतिनिधि ग़ज़लों, प्रस्तुत किए गए शोधपत्रों, कार्यक्रमों की रिपोर्ट्स और अंबेडकरवादी ग़ज़ल की बेसिक पहचान से जुड़े लेखों आदि को संकलित करके, नव दलित लेखक संघ की ओर से एक वृहत पुस्तक प्रकाशित किए जाने की योजना है जो निश्चित ही अंबेडकरवादी ग़ज़ल को स्थापित करने की ऐतिहासिक पहल होगी।” 

‘कौन दिशा में उड़े चिरैया’ पर प्रथम वक्ता के तौर पर इंद्रजीत सुकुमार ने विस्तार से अपनी बात रखी। जिसका संक्षिप्त ब्योरा इस प्रकार है: इंद्रजीत सुकुमार जी ने कहा कि “आज के समय में बेबाकी से कुछ भी लिखना बड़ा ही जोखिम भरा काम है लेकिन तेजपाल सिंह ‘तेज’ जी ने अपनी ग़ज़लों में इस प्रकार की जोखिम उठाया है। उन्होंने न सिर्फ़ दलितों, वंचितों के हक़ में क़लम चलाई है बल्कि आज की राजनीति और समाज में फैली बहुत-सी बुराइयों को भी अपनी ग़ज़लों में निशाना बनाया है। वे भाषा में सहज और सरल होते हुए भी, प्रतीकात्मक रूप से अपनी बात कहने में पूरी तरह सफल हुए हैं। इस कारण उनकी ग़जलों का साधारणीकरण हो जाता है और पाठक आराम से उनके कथ्य, मर्म और भावना से तादात्मय बैठा लेता है।”

डॉ. कुसुम वियोगी ने कहा कि “तेजपाल सिंह ‘तेज’ की रचनाधर्मिता को किसी एक खाँचे में रखकर नहीं देखा जा सकता है। इन्होंने जीवन में जिन भी विषयों को छुआ है, उन पर इन्होंने अपने अलग ही ढंग से क़लम चलाई है। इस कारण इनकी गज़लें दलित और जनवाद से अधिक जन-सरोकार और जनतांत्रिक मूल्यों की ग़ज़लें हैं। अच्छा होता कि प्रस्तुत ग़ज़ल संग्रह का शीर्षक ‘कौन दिशा में उड़े चिरैया’ की जगह ‘कौन दिशा में उड़े रे चिरैया’ होता, इससे इसकी मारकता और संप्रेषणीयता और बढ़ जाती।”

‘कौन दिशा में उड़े चिरैया’ के संपादक हरेराम नेमा समीप ने बताया कि चूँकि मैं ग़ज़लों पर ही काम करता रहता हूँ इसलिए मुझसे बहुत से शोधार्थी ग़ज़ल संग्रहों की माँग करने आते रहते हैं। तेजपाल सिंह ‘तेज’ और मेरा चार दशकों से भी अधिक का साथ रहा है, लिहाज़ा मैं उनकी ग़ज़लों से भी वाक़िफ़ रहा हूँ। उक्त संदर्भ में मुझे उनके पाँच-छह ग़ज़ल संग्रहों में से उनकी कुछ प्रतिनिधि ग़ज़लों को छाँटकर दो ग़ज़ल संग्रह अलग से संपादित करना उचित लगा, और मैंने यह काम किया भी। उन्हीं में ‘कौन दिशा में उड़े चिरैया’ नाम से एक ग़ज़ल संग्रह संपादित किया गया है। यह शीर्षक उनकी की एक ग़ज़ल ‘कौन दिशा में उड़े चिरैया/अम्बर-अम्बर आग पली है।’ से लिया गया है। यह शीर्षक सैकड़ों शीर्षकों में से छाँटा गया शीर्षक है जो कि बहुत ही प्रतीकात्मक है। इससे तेजपाल सिंह ‘तेज’ की ग़ज़ल धर्मिता को बड़ी आसानी से समझा जा सकता है। वे गहरे अहसास वाले शायर है। उनकी ग़ज़लों में जीवन, रिश्तों और समाज से जुड़े हुए जनतांत्रिक मूल्य आसानी से देखे जा सकते हैं। उनके शिल्प पर उनका कथ्य भारी पड़ता है। इस कारण उनकी ग़ज़लें यदि थोड़ा बहुत ग़ज़ल के मानदंड से हट भी जाती हैं तो भी उनकी पठनीयता, संप्रेषणीयता और प्रासंगिकता पर कुछ ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता है।”

तत्पश्चात्, लोकेश कुमार ने ‘ग़ज़ल, कल और आज’ विषय पर अपने पेपर का सार प्रस्तुत करते हुए कहा कि “भारत में ग़ज़ल अमीर खुसरो से होती हुई ग़ालिब और फिर हिंदी शायर दुष्यंत कुमार, अदम गोंडवी जैसे शायरों तक पहुँची है। भले ही देश में ग़ज़ल का इतिहास बहुत पुराना रहा हो लेकिन हिंदी में उसकी पहचान बनाने में दुष्यंत कुमार और अदम गोंडवी जैसे शायरों का बहुत बड़ा हाथ है।” 

आर.पी. सोनकर ने तेजपाल सिंह ‘तेज’ की ग़ज़लों पर सारगर्भित टिप्पणी रखते हुए कहा कि “मैंने उनकी जितनी गज़लें पढ़ीं, उनमें से कुछेक को छोड़ दें तो ज़्यादातर ग़ज़लें ग़ज़ल-व्याकरण फायलातुन फायलातुन फायलातुन फायलातुन . . . आदि पर खरी उतरती हैं। दूसरे, उनका कथ्य इतना प्रबल है कि पाठक का ध्यान व्याकरण पर कम ही जाता है।”

डॉ. अमित धर्मसिंह ने अपनी टिप्पणी रखते हुए कहा कि “अंबेडकरवादी ग़ज़ल में शिल्प उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि सब्ज़ी में हरा धनिया। इसके होने से ग़ज़ल का महत्त्व और बढ़ जाता है, लेकिन इसका, यह मतलब क़तई नहीं कि ग़ज़ल के जटिल ग्रामर में उलझकर अंबेडकरवादी लेखक, ग़ज़ल लिखना ही छोड़ दे। अपनी ग़ज़लों में रूढ़िवाद, पाखंडवाद आदि को स्थान न दें। उन्हें चाहिए कि वे ग़ज़ल लिखने का निरंतर अभ्यास करते रहें। धीरे-धीरे कथ्य के साथ-साथ शिल्प भी निखर ही आएगा। इसके लिए प्रतिष्ठित ग़ज़लकारों से शिल्प संबंधी सुझाव व सुधार लेने में भी कोई बुराई नहीं है।” 

लेखकीय वक्तव्य में तेजपाल सिंह ‘तेज’ ने अपनी रचना यात्रा पर समुचित प्रकाश डाला और बताया कि मेरी ग़ज़लें ए.सी. वाले कमरों में बैठकर नहीं लिखी गई हैं और न ही ये किसी मठ से जुड़ी रही हैं। मेरी ग़ज़लें राह चलते, ट्रेनों और बसों आदि में सफ़र करते हुए बन पड़ी हैं। इस कारण मेरी ग़ज़लों के विषय भी लोक जगत और समाज से आए हैं। इन्हें कहने/लिखने में मैंने किसी भी प्रकार के बंधन को स्वीकार नहीं किया है। मुझे जो विषय लिखने के लिए जँचा, मैंने उस पर अपनी तरह से खुलकर लिखा। विचारधारा या ग़ज़ल के व्याकरण आदि के फेर में, मैं नहीं पड़ा हूँ। मुझे लगता है कि यह कार्य तो आलोचकों, समीक्षकों और अकादमिक अध्येताओं आदि का है। फिर भी मुझे सोनकर जी से यह जानकर अच्छा लगा कि मेरी अधिकांश गज़लें ग़ज़ल की परंपरागत बहर में हैं, इसलिए भी यह गोष्ठी मेरे लिए बहुत ख़ास हो गई है, जिसके लिए मैं डॉ. अमित धर्मसिंह सहित नव दलित लेखक संघ के सम्पूर्ण संयोजक मंडल का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।” तत्पश्चात्, उन्होंने ‘कौन दिशा में उड़े चिरैया’ से दो-तीन ग़ज़लों का पाठ भी किया। 

अध्यक्षीय वक्तव्य में बंशीधर नाहरवाल ने कहा कि “जब कार्यकारिणी में डॉ. अमित धर्मसिंह ने पूरे वर्ष ग़ज़लशाला चलाने का प्रस्ताव रखा, तब लगा नहीं था कि यह सत्र इतना महत्त्वपूर्ण होने जा रहा है। लग रहा था कि ग़ज़ल जैसी जटिल विधा पर परिचर्चा/ गोष्ठियों का कैसे निर्वाह हो पाएगा। लेकिन आज की गोष्ठी की अतिशय सफलता से, अब लग रहा है कि यह सत्र वाक़ई बहुत सार्थक और नया कुछ सिखाने वाला रहेगा। तेजपाल सिंह ‘तेज’ की ग़ज़लों पर वक्ताओं और लेखक को सुनकर लगा कि ग़ज़ल के विषय में आज बहुत-सा अज्ञान छँट गया है। इस पूरे सत्र से निश्चित ही हमारे साथ-साथ और भी बहुत से अंबेडकरवादी लेखक, ग़ज़ल लिखने का बेहतर प्रयास करेंगे।” 

गोष्ठी में जुड़ने वाले साहित्यकारों में क्रमशः डॉ. गीता कृष्णांगी, जलेश्वरी गेंदले, सुषमा भास्कर, पुष्पा विवेक, राजीव अम्बाड़े, ऐदलसिंह, मदनलाल राज़, लता नागडावाने, सुरेंद्र अम्बेडकर, ओमप्रकाश गौतम, ज्ञानेंद्र सिद्धार्थ, डॉ. प्रिया राणा, अनुपा एस एस, जयराम कुमार पासवान, अनिल रंगारी, जोगेंद्र सिंह, श्यामलाल राही, अशोक जोरासिया, बीर बहादुर महतो, सी.एम. बौद्ध, डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंह, राधेश्याम कांसोटिया, राजेंद्र वर्मा, रामदास बरवाली, डॉ. उषा सिंह, फूलसिंह कुस्तवार, मनोज कुमार, उमेश राज़, प्रमोद युगन्धर, दिनेश कुमार, चितरंजन गोप लुकाटी, ज़ालिम प्रसाद, रामसूरत भारद्वाज, ज्योति पासवान, देवीलाल धान्दव, सोनू गोयल, जगतारण डहरे, जगदीश कश्यप, रोशन लाल, संजीव कश्यप, कृष्ण कुमार, डॉ. रामावतार मेघवाल सागर, अमित रामपुरी, सत्यपाल सिंह कर्दम, रूप सिंह रूप और सुरेश कुमार जिलोवा आदि उपस्थित रहे। सभी गणमान्य साहित्यकारों का धन्यवाद ज्ञापन मदनलाल राज़ ने किया।

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