साथ-साथ सब क़दम उठें

01-01-2024

साथ-साथ सब क़दम उठें

तेजपाल सिंह ’तेज’  (अंक: 244, जनवरी प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

हरिक वर्ष कुछ ऐसे आए, साथ-साथ सब क़दम उठें, 
मानव-मानव को पहचाने, प्रेम के प्याले छलक उठें। 
 
हवा मुकम्मिल दुनिया की, गर बदले तो यूँ बदले, 
बस्ती बस्ती ख़ुशहाली हो, बाग़-बग़ीचे महक उठें। 
 
सूरज यूँ धरती पर उतरे, आँगन-आँगन धूप खिले, 
सुबह सवेरे बैठ मुँडेरी, चीं-चीं चिड़िया चहक उठें। 
 
हरिया को रोटी मिल जाए और धनिया को पैंजनिया, 
छालों भरे हाथ को चूड़ी, घायल पायल छनक उठें। 
 
हिंदू हो या मुस्लिम कोई, कोई इसाई, सिख या बौद्ध, 
आपस में यूँ 'तेज' मिलें सब, सबके चेहरे चमक उठें। 

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