मज़हबी टेहनी पे गुल फूटेंगे अभी और
तेजपाल सिंह ’तेज’
मज़हबी टेहनी पे गुल फूटेंगे अभी और,
देखते रहिए कि रंग बदलेंगे अभी और।
भँवरों की मानो बारहा नीयत बदल गई,
इज़्ज़त गुलो-गुलजार की लूटेंगे अभी और।
इस क़द्र अब आँधियाँ उभरी हैं फलक पर,
कि घोंसले अरमान के टूटेंगे अभी और।
कब तलक चिल्लाएगा चीखेगा आदमी,
कि इंसानियत के हौसले टूटेंगे अभी और
रुख़ हवा का देखकर लगता है 'तेज' कि
सपने अमन के और भी टूटेंगे अभी और।
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