मैं सफ़र से ऐसे गुज़र गया
तेजपाल सिंह ’तेज’
मैं सफ़र से ऐसे गुज़र गया,
ज्यूँ दरिया कोई उतर गया।
मिलने वाला मिल नहीं पाया,
मैं इधर गया वो उधर गया।
दर्पण देखा तो आँखों में,
रुख़ अपना ही उभर गया।
बासी फूल की पत्ती हूँ मैं,
ठसक लगी कि बिखर गया।
रात की ख़ामोशी में तनहा,
न जाने कब सँवर गया।
कल तक ‘तेज’ साथ था मेरे,
आज न जाने किधर गया।
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