सियासी गंगा में डुबकी लगाइए और पवित्र हो जाइए
प्रभुनाथ शुक्लदेखिए! आप कितना भी पाप करिए, लेकिन एक बार गंगा स्नान कर लीजिए सारे पाप धूल जाएँगे। हमारे यहाँ तो यहाँ तक कहा गया है कि गंगा दर्शन मात्र से हमारी मुक्ति हो जाती और सारे पाप धुल जाते हैं। इसीलिए अब लोग पुण्य की चिंता छोड़ दिए हैं और पाप पर पाप किए जा रहे हैं। एक-दो पाप नहीं पूरा घड़ा ही पाप से भर रहे हैं। दरअसल उनके पुण्य में ही पाप की आत्मा बसी है। हमारे वेद और शास्त्रों में गंगा स्नान बेहद पवित्र माना गया है। इसीलिए लोग ग़लत कार्य करने में कभी नहीं डरते हैं। क्योंकि उनके पास पाप धोने के लिए गंगा है। अब गंगा भी पापियों का पाप धोते-धोते मैली हो चली है। आजकल लोग अब गंगा से अधिक पवित्र पाप धोने के लिए सियासी गंगा को मानने लगे हैं।
सच मानिए! पाप धोने का आजकल सबसे मॉडर्न तरीक़ा भी आ गया है। वह है सियासी गंगा में स्नान। इस गंगा में स्नान करना बेहद पुण्य फलदायी होता है। कहते हैं कि सियासी गंगा का स्नान गंगा से भी पवित्र होता है। इस गंगा में स्नान करने से सारे कलुष धुल जाते हैं। इस गंगा में स्नान से कई पीढ़ियाँ तर जाती हैं। लेकिन इस गंगा में स्नान की शर्त भी है। सियासी गंगा में स्नान का फल तभी मिलता है जब चुनावों का मौसम हो। आप भ्र्ष्टाचार को शिष्टाचार बना लिए हों। आप के ख़िलाफ़ जितनी जाँच एजेंसिया हों सब लगी हों। आप विपक्ष में रह कर कितना भी भ्र्ष्टाचार, बलात्कार, लूट, हत्या जैसा अपराध और पाप किए हों सब धुल जाता है। बस एक बार आप सत्ता की गंगा में डुबकी लगा लिए तो आपके सारे पाप धुल जाएँगे। फिर आपके पास जाँच की आँच कभी नहीं आएगी। सत्ता में आने के बाद फिर आप पाप का घड़ा भरना शुरू कर दीजिए।
आजकल चुनावी मौसम में सियासी गंगा में नहाने का दौर चल पड़ा है। ऐसे घाटों पर बड़ी भीड़ दिख रही है। इस भीड़ में वामपंथ, दक्षिण पंथ और सेकुलर का तटबंध टूट गया है। जिस गंगा में लोग अपने पाप की सियासी गठरी लेकर कूद रहे हैं वह भी अपवित्र और मैली हो चली है। लेकिन सियासी घाट पर बैठे पंडे सबसे पवित्र होने का दावा कर रहे हैं और डुबकी लगाने वाले का चंदन लगा और दुपट्टा ओढ़ा स्वागत कर रहे हैं। सियासी गंगा में वे डुबकी लगा अपने भ्र्ष्टाचार को भले छुपा लें, लेकिन लोकतंत्र में तो उनका पाप तभी धुलेगा जब मतदाता उनके माथे पर जीत का छापा-तिलक लगाएगा। क्योंकि यह पब्लिक है सब जानती है।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
-
- झूठ का मुस्कुराइए और हैप्पी न्यू ईयर मनाइए
- देखो! चुनाव आया है ग़रीब की झोंपड़ी में भगवान आया है
- पल्टूराम फिर मार गए पल्टी
- प्रेस ब्रीफ़िंग में बोला ‘रावण’ दशहरे पर नहीं मरूँगा!
- फागुन में ‘चंदे की कालिख’ नहीं वोट का गुलाल लगाइए
- फूफा जी! चंदन लगाइए, गिफ़्ट में बुलट ले जाइए
- मैं साँड़ हूँ! जहाँ जाइएगा मुझे पाइएगा . . .?
- राजनीति का झूठ कितना पुरातात्विक?
- सियासी गंगा में डुबकी लगाइए और पवित्र हो जाइए
- हिंदी की खाइए और अंग्रेज़ी की गाइए
- विडियो
-
- ऑडियो
-