आओ! थोड़ा मुस्कुरा लेते हैं
प्रभुनाथ शुक्ल
देखो! दुनिया कितनी बदल गई है ना
सबको तो बस! अपनी ही पड़ी है
दूसरे की कोई सुनता ही नहीं
कोई दूसरे को पढ़ता नहीं
दूसरे को कोई जानता नहीं
आओ! हम-तुम मन की बातें करते हैं
थोड़ा मुस्कुरा और खिलखिला लेते हैं
जब! फ़ुर्सत मिले तो थोड़ा मुस्कुराते जाओ
देखो! ज़िन्दगी कितनी आसान हो जाएगी?
मैं चाहती हूँ जब तुम थक जाओ
जब तुम हार जाओ तो मेरी तरफ़ देख लिया करो
मैं तुम्हारा हौसला और संकल्प हूँ
मैं तुम्हारा प्रकल्प हूँ
जीवन जीने की कला हूँ
तुम कभी मेरी तरफ़ देखते ही नहीं
मैं संदेश देती हूँ!
लेकिन, तुम उसे अनसुना कर देते हो
मैं तुम्हें सँभालती हूँ!
तुम्हारे संकल्पों की याद दिलाती हूँ
लेकिन! दीवानगी में तुम भूल जाते हो
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