शब्द

प्रभुनाथ शुक्ल (अंक: 238, अक्टूबर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

शब्द बस! शब्द हैं
कभी निःशब्द कर जाते हैं
कभी निस्पंद कर जाते हैं 
कभी दिल पर चोट कर जाते हैं 
और कभी दिल जीत जाते हैं
 
शब्द बस! शब्द हैं
कभी मधुवन से लगते हैं
कभी जेठ से तपते हैं 
कभी माघ बन जाते हैं 
और कभी सावन सा बरसते हैं 
 
शब्द बस! शब्द हैं
कभी गुदगुदाते हैं
कभी सहलाते हैं 
कभी हँसाते हैं 
और कभी रुला जाते हैं
 
शब्द बस! शब्द हैं
कभी तन्हाइयाँ बन जाते हैं
कभी रुसवाइयाँ बन जाते हैं
कभी जुदाइयाँ बन जाते हैं
और कभी परछाइयाँ बन जाते हैं 
 
शब्द बस! शब्द हैं
कभी दिल तोड़ जाते हैं
कभी दिल जोड़ जाते हैं 
कभी यादों में बस जाते हैं
और कभी दिल में उतर जाते हैं 

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