सड़क की पीड़ा
प्रभुनाथ शुक्ल
मैं ने सुनी हैं उसकी आहटें
मौन पीड़ा और अकुलाहटें
वह बिलखती और तड़पती भी है
आँसुओं से नहाती भी है
लेकिन . . .
उसकी आवाज़ मौन है
क्योंकि वह एक सड़क है!
अब वह अकेली है
उजड़ गए हैं उसके शृंगार
विस्तार के लिए काट दिए गए पेड़
वह अब नंगी और बेजान है
क्योंकि . . .
उसका अपनापन लूट गया
अब गर्म सूरज उसे पिघलाएगा
बारिश उसे भिगोएगी
वाहनों की चोट से वह घायल होगी
अपना सुख-दुःख भी नहीं बाँट पाएगी
क्योंकि . . .
विस्तावाद में उसने अपनों को खो दिया
अब धूप में पिघलना, बारिश में भीगना
गर्मी से जलना और ठंड में सिकुड़ना
उसकी नियति होगी
क्योंकि . . .
उसका अपनापन लूट गया?
!! समाप्त!!
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