अपशिष्ट
प्रभुनाथ शुक्ल
कल तक जो विशिष्ट था
वह अब अपशिष्ट है
उसका न कोई परिशिष्ट है
वह छोड़ दिया गया है
लावारिस सा . . .?
घर के किसी कोने में या आसपास
खुली सड़क या फिर मैदान में
कल वह! कचरा बन जाएगा
अपनों से जो छूट जाता है
वह ग़ैरों से भी रूठ जाता है . . .?
लोग उसे अर्थहीन समझते हैं
कचरे की माफिक?
वह कबाड़ बन जाएगा
कबाड़ी को बिक जाएगा
या फिर कूड़ा बन जाएगा
हाँ! वहीं विशिष्ट
कल अपशिष्ट बन जाएगा
शायद! यहीं नियति है?
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