जायज़

सपना चन्द्रा (अंक: 200, मार्च प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

“अरे! . . . कितना प्यारा बच्चा है . . . पूरा हष्ट-पुष्ट भी . . . जैसे इसका बाप था बचपन में . . .” 

“चेहरा भी एकदम रंजीत पर गया है . . . क्यूंँ बहूरानी . . .? सही कह रही हूँ न!” 

“जीऽऽ . . . जीऽऽ . . . बुआजी!” हकलाते हुए निकिता ने कहा था। 

निकिता-रंजीत की लव मैरिज है . . . एक ऊँची जात तो दूसरी छोटी जात . . . पर एकलौते बेटे की ज़िद के आगे थोड़ी–बहुत नाराज़गी के बाद रंजीत के परिवार ने छोटी जात निकिता को अपना लिया था। 

दोनों ही नौकरीपेशा थे और अक़्सर उनका टूर होता रहता था। 

जब तीन-चार वर्षों के बाद भी निकिता की गोद सूनी रही तो निम्मो बुआ ही थी जिनकी धमक परिवार में चलती आ रही थी; वो हमेशा पूछती रहती . . . ”कुछ ख़बर है या अभी तक प्लानिंग ही चल रही है?” 

“बहुत दिन हो गए . . . अब इंतज़ार नहीं होता . . .” 

मेडिकल रिर्पोट के अनुसार . . . रंजीत पिता नहीं बन सकता था . . .। कमी उसमें थी। इस ख़बर से रंजीत टूट सा गया था। ख़ुद भी इकलौता था और फिर ये रिपोर्ट . . .। उसे गहरे अवसाद में ले जाती, परंतु निकिता की एक नेक सलाह ने रंजीत के उदास चेहरे पर ख़ुशियाँ लौटा दीं। 

“क्यूँ न हम एक बच्चा गोद ले लें . . .। इस शहर से दूर . . . पूरे सात महीने तक हमें सबसे अलग रहना होगा . . . ताकि किसी को कोई शक न हो।” 

शुरूआती के दो महीने में कोई दिक़्क़त नहीं थी। तीसरे महीने वे लोग बहाने बनाकर दूर रहने का इंतज़ाम कर लेते हैं . . . और समय पूरे होने पर एक सुंदर बच्चे को गोद में लिए घर वापस लौटते हैं। 

ख़ूब बलाएँ ली जाती हैं . . . बच्चे का आगमन हरेक चेहरे पर ख़ुशियाँ भर देता है। 

 ख़ुश-ख़बरी सुन कर निम्मो बुआ भी आई हैं। 

बच्चे को देख-देख फूले न समाती . . . ख़ूब प्यार उड़ेलती। 

एक दिन किसी चीज़ को ढूँढ़ते हुए उन्हें वो पेपर दिख जाता है, जिसमें गोद लेने की सारी प्रकिया लिखी होती है . . . और रंजीत का सच भी। 

झट कमरे से निकल पालने में सो रहे बच्चे को ग़ौर से देखती है . . .। 

“बहू . . . एक बात पूछूँ . . .?”

“जी बुआजी!” 

“क्या गोद लिए बच्चे की शक्ल गोद लेने वाले माता-पिता से मिल सकती है . . .?” 

निकिता इस सवाल से घबरा जाती है . . . पर पलभर में सँभलकर जवाब देती है, “बुआजी!॥बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं . . . जिसकी गोद मिले . . . उसमें ढल जाता है . . . बच्चे कभी नाजायज़ नहीं होते . . . सोच होती है। 

“बुआजी अगर सच का पता न चलता तो . . .? सच जानकर विचार बदले हैं आपके। जबकि बच्चा तो वही है। 

“और हाँ बुआजी! . . . मैं पहेली में यक़ीन नहीं रखती। 

“आपने जब सब जान ही लिया है तो बता देती हूँ . . . ये हमारा बच्चा है . . . और हमारा भविष्य भी।” 

गर्वीली ममता के आगे बुआजी निशब्द . . . 

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