ग़ज़ल- 212 212 212 212
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
ज़ुल्म कितना वो ज़ालिम करेगा यहाँ
तख़्त से एक दिन तो हटेगा यहाँ
जितने आए सिकंदर चले सब गए
कब हमेशा रहा जो रहेगा यहाँ
आग नफ़रत की मिलके बुझाएँगे हम
भाई भाई गले फिर मिलेगा यहाँ
बाद पतझड़ के आती बहारें सदा
फिर से गुलशन हमारा खिलेगा यहाँ
काम ऐसा करो की ख़ुदा ख़ुश रहे
लेके जाएगा क्या जब मरेगा यहाँ
ताज़ तेरा रहा है न मेरा रहा
वक़्त के साथ हर दम फिरेगा यहाँ
अपना आईन है कितना अच्छा 'निज़ाम'
जो भी तोड़ेगा इसको मिटेगा यहाँ
– निज़ाम-फतेहपुरी