वो मुलाक़ात
शैली
मृत्यु के बाद, हुई यमराज से मुलाक़ात
मैंने प्रणाम किया, आशीष मिला
पूछ ही लिया, क्यों यहाँ लाये हैं?
क्या मैंने ज़िन्दगी में पाप ही कमाये हैं?
यमराज बोले पाप से मृत्यु का कोई सम्बन्ध नहीं
मरते दोनों हैं पुण्यार्थी या घोर पापी
मैंने पूछा मुझे नर्क मिलेगा या स्वर्ग?
यमराज बोले, ये तो समय बतायेगा
तुम्हारा समय स्वर्ग में बीतेगा या नर्क दिखायेगा
तुम्हें ज़िन्दगी का हिसाब देना होगा
क्या भला किया क्या बुरा, खुल के कहना होगा
हाथ जोड़ कर कहा—
मैंने तो सब भला किया,
लोगों को ये बात समझ में नहीं आयी
मेरी बातों की व्याख्या में दूसरों ने अक़्ल लगायी
आपको स्वयं मेरे काम देखने थे,
आप तटस्थ हैं, पूर्वाग्रह ग्रस्त नहीं थे
ऐसे लोग पृथ्वी पर मिलते नहीं हैं
चिढ़ें नहीं तो दिन चलते नहीं हैं
ऐसों की बात का मतलब नहीं है
उनकी गवाही की क़ीमत नहीं है
सैकड़ों मित्र थे हज़ारों फ़ालोवर हैं
फ़ेसबुक पर देखिये हमारी क्या क़ीमत है
यम ने हमारे 'फ़िफ़्टी के' फ़ालोवर देख कर
हमें छोड़ा था भूमि पर, इज़्ज़त के साथ
फ़्रेंड रिक्वेस्ट भी भेजी, फ़ेस बुक, इन्सटा के साथ
2 टिप्पणियाँ
-
अच्छी पर अधूरी सी लगी
-
वाह फ़ेसबुक का दमख़म हमें आज समझ आया । मज़ेदार रोचक । हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अप्रतिहत
- अमृत जयन्ती तक हिन्दी
- आराधना
- उचित क्या है?
- एकता का बंधन
- क्वार का मौसम सुहाना
- खोज
- ग्रहण में 'शरतचंद्र'
- चाँद पर तीन कवितायें
- जलता यूक्रेन-चहकते चैनल
- जादू की परी?
- जाने क्यूँ?
- डिजिटल परिवार
- त्रिशंकु सी
- दिवाली का आशय
- देसी सुगंध
- द्वंद्व
- पिता कैसे-कैसे
- प्यौर (Pure) हिंदी
- प्राचीन प्रतीक्षा
- फ़ादर्स डे और 'इन्टरनेटी' देसी पिता
- फागुन बीता जाय
- फागुनी बयार: दो रंग
- माँ के घर की घंटी
- ये बारिश! वो बारिश?
- विषाक्त दाम्पत्य
- शब्दार्थ
- साल, नया क्या?
- सूरज के रंग-ढंग
- सौतेली हिंदी?
- हिन्दी दिवस का सार
- होली क्या बोली
- हास्य-व्यंग्य कविता
- किशोर साहित्य कविता
- कविता-ताँका
- सिनेमा चर्चा
- सामाजिक आलेख
- ललित निबन्ध
- विडियो
-
- ऑडियो
-