डिजिटल परिवार 

15-12-2021

डिजिटल परिवार 

शैली (अंक: 195, दिसंबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

एक छत के तले, 
भिन्न दायरों में बँटे 
अब नहीं मिलते 
माँ बाप बच्चे 
सबके कमरे अलग 
बाथरूम सटे
सबके मोबाइल 
हाथों में फँसे 
सब के पसन्द की 
सामग्री मिलती है 
हर आँख फोन की 
स्क्रीन से चिपकी है
आपस की बातें 
मैसेज से होती हैं 
स्विग्गी, ज़ोमेटो 
माँ की रसोई हैं 
आसमुद्र अन्तराल 
मोबाइल से घट गए 
सिडनी के बन्दे 
नॉर्वे से जुड़ गए 
लेकिन परिवार . . . 
टुकड़ों में बँट गए 

1 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य कविता
कविता
किशोर साहित्य कविता
कविता-ताँका
सिनेमा चर्चा
सामाजिक आलेख
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में