साल, नया क्या?
शैलीनया साल आएगा, क्या बदल जाएगा? 
दिन-रात, धरती-आकाश या गिरते बाल? 
प्रसन्नता, अवसाद, मानसिक उन्माद या दम घोंटते विचार? 
झुकती कमर, धुँधलाती नज़र या नासूर बने घाव? 
दर्द-बीमारी, उम्र की लाचारी या थरथराते पाँव? 
 
सीमा विवाद, चीन-पाकिस्तान या ओमिक्रॉन? 
घटता मनोबल, बढ़ता संक्रमण या मृत्युदर का ग्राफ़? 
मास्क ढकी नाक, व्यस्त श्मशान या रोगियों से पटे अस्पताल? 
 
प्रचलित कुरीतियाँ, खोखली नीतियाँ या चुनावी घमासान? 
धरना-आन्दोलन, बाहुबल प्रदर्शन या बरगलाते प्रचार? 
धार्मिक उन्माद, टकराते अहंकार या हिंसाग्रस्त गाँव? 
 
कुपोषित बच्चे, अशिक्षित औरतें या बिलखते अनाथ? 
स्वप्नहीन आँख, गिरता विश्वास या कचरा टटोलते हाथ? 
दिग्भ्रमित पीढ़ियाँ, अर्थहीन रूढ़ियाँ या अवैध व्यवसाय? 
 
बिगड़ते रिश्ते, बँटते मकान या बिखरते परिवार? 
कुंठित इन्सान, एकाकी आवास या वीडियो कॉल्स? 
सिमटता संसार, डिजिटल सम्वाद या ऑनलाइन व्यवहार? 
सेटेलाइट दीदार, वर्चुअल प्यार या आस्था का अभाव? 
 
साल, नया साल? साल दर साल, अनवरत बह रहा समय का प्रवाह . . .  
दशाब्दी, शताब्दी, युग, वर्ष, माह . . . या फिर दिनमान! 
वक़्त के प्रवाह को चिह्न-चिह्न खींच कर 
टुकड़ों में बाँटने का, मानव प्रयास। 
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