होली क्या बोली
शैलीक्या होली सिर्फ़ चेहरे पर रंग लगाती है?
शरीर और चूनर को रंगों से भिगाती है?
गुझिया, पुए और मिठाइयाँ खिलाती है?
होली जो चेहरे पर रंग लगाती है . . .
आपकी रोज़ की पहचान छुपाती है,
ओढ़ी हुई अस्मिता,
मान और अभिमान से मुक्ति दिलाती है
थोड़ी देर के लिए आपको,
ख़ालिस, खरा इन्सान बनाती है,
बंधनों से दूर, सहज, सुखद क्षितिज में ले जाती है
आपको को आप से अलग कर
मुक्ति का एहसास कराती है,
हौले से आपको उड़ा ले जाती है
मौज और मस्ती से परिचय कराती है
भंग और रंग से तरंगित करती है
दुःख और विषाद को भूलने में मदद करती है
बंधनों को खोलती है, हाथों को रंग डुबोती है
कहती है रंग लो, सभी सपनों को
आज को, कल को आगत भविष्य को
रंगीन कर लो आत्मा और विश्वास को
भावनाओं को गुलाल सा उड़ने दो
ख़ुशियों के राग को मस्ती में गाओ
फाग के ख़ुमार में खो जाओ
फेंक दो पानी में विषाद और चिन्ता को
रंगों के साथ घुल जाने दो
गले लगा लो सब दोस्त और दुश्मन को
गिले-शिकवे मिट जाने दो
होली की मस्ती को सिर पर चढ़ जाने दो
बे-रंग जीवन को रंगों से रंग जाने दो . . .
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