वो एक मुद्दत का इश्क़
अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श’बहुत बेचैन होता हूँ
आपकी हर एक बात से,
इश्क़ भी पनपता हैं कहीं दिल में
पर एक अजीब विडंबना है।
मेरा बेचैन होना, इश्क़ का पनपना
मुझे बेवफ़ा बनाती है,
उस एक नाकामयाब
एक तरफ़ा इश्क़ के प्रति।
वो एक मुद्दत का इश्क़।
तब नासमझ था
कुछ बोल नहीं पाया
कि बहुत इश्क़ है उससे,
आज समझा हूँ
कुछ बोल नहीं पाऊँगा
कि कुछ नहीं है तुमसे।
अब भी चाहत है दिल में
उस अधूरे इश्क़ के प्रति।
वो एक मुद्दत का इश्क़।
7 टिप्पणियाँ
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Nice poetry
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Awesome
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बेहतरीन कविता
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Nice poem
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बहुत बढ़िया कविता सर
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Nice poem
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बहुत ही गहरी कविता भाई
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