इश्क़ से गर यूँ डर गए होते
अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श’फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22
इश्क़ से गर यूँ डर गए होते,
छोड़ कर यह शहर गए होते।
मिल गए हमसफ़र से हम वर्ना,
आज तन्हा किधर गए होते।
होश है इश्क़ में ज़रूरी अब,
बे-ख़ुदी में तो मर गए होते।
यूँ कभी याद चाय की आती,
और हम तेरे घर गए होते।
वक़्त मिलता नहीं हमे अब तो,
"अर्श" थोड़ा ठहर गए होते।
1 टिप्पणियाँ
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Kya baat h awesome
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