गीत-ओ-नज़्में लिख उन्हें याद करते हैं
अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श’212 222 22 21 222
गीत-ओ-नज़्में लिख उन्हें याद करते हैं,
चाय की सोहबत में दिल को शाद करते हैं।
इस शब-ए-ग़म में क्या हम शब-ज़ाद करते हैं,
बस सुबह तक ताब-ए-ग़म ईज़ाद करते हैं।
ख़ुद-कलामी की आदत हम को हुई जब से,
तब से बस तन्हाई पर बेदाद करते हैं।
बढ़ रही है जितनी मीआद-ए-सितम दिल में,
और भी हम ग़ज़लों को नौशाद करते हैं।
अर्श तुम भी तो जानो क्या क्या मुहब्बत में,
हीर-राँझा-ओ-शीरीं-फ़रहाद करते हैं।
4 टिप्पणियाँ
-
Khubsurat ghazal bahi
-
Gajab sher
-
Waah khub
-
Waah
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
- ग़ज़ल
-
- अंततः अब मिलना है उनसे मुझे
- इक लगन तिरे शहर में जाने की लगी हुई थी
- इश्क़ तो इश्क़ है सबको इश्क़ हुआ है
- इश्क़ से गर यूँ डर गए होते
- उनकी अदाएँ उनके मोहल्ले में चलते तो देखते
- गीत-ओ-नज़्में लिख उन्हें याद करते हैं
- गुनाह तो नहीं है मोहब्बत करना
- दिल उनका भी अब इख़्तियार में नहीं है
- मेरा सफ़र भी क्या ये मंज़िल भी क्या तिरे बिन
- रोज़ जोश-ए-जुनूँ आए
- सिर्फ़ ईमान बचा कर मैं चला जाऊँगा
- सुनो तो मुझे भी ज़रा तुम
- हर सम्त इन हर एक पल में शामिल है तू
- विडियो
-
- ऑडियो
-