रोज़ जोश-ए-जुनूँ आए
अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श’बह्र : 212 212 22
रोज़ जोश-ए-जुनूँ1 आए,
साथ बख़्त-ए-ज़बूँ2 आए।
अब भला क्या सुकूँ आए,
हाँ भला अब ये क्यूँ आए।
हाल क्या है कहे क्या अब,
जब कहीं अंदरूँ3 आए।
हाल फ़र्ज़ी नहीं है कुछ,
ये नज़र जूँ-का-तूँ4 आए।
'अर्श' जो थी तरब5 वो ही,
बन के दर्द-ए-दरूँ6 आए।
शब्दार्थ :
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जोश-ए-जुनूँ = उन्माद और पागलपन का जोश, दीवाना पन
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बख़्त-ए-ज़बूँ = बुरा भाग्य, दुर्भाग्य, अपशकुन, बदनसीबी
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अंदरूँ = दिल
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जूँ-का-तूँ = हूबहू
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तरब = ख़ुशी, आनन्द, आह्लाद, हर्ष, उल्लास
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दर्द-ए-दरूँ = दिल का दर्द, दिल की पीड़ा