गुनाह तो नहीं है मोहब्बत करना
अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श’बह्र : 121 2122 222 22
गुनाह तो नहीं है मोहब्बत करना,
मगर हाँ जब करो इसकी अज़्मत करना।
ये इश्क़ प्यार मोहब्बत जो भी बोलो,
है अर्थ तो ज़माने को जन्नत करना।
करो जहाँ को रौशन मोहब्बत से तुम,
किसी की ज़िंदगी में ना ज़ुल्मत करना।
सफ़र ये दिल से दिल तक का है मोहब्बत,
कभी भी इस सफ़र में ना उजलत करना।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
- ग़ज़ल
-
- अंततः अब मिलना है उनसे मुझे
- इक लगन तिरे शहर में जाने की लगी हुई थी
- इश्क़ तो इश्क़ है सबको इश्क़ हुआ है
- इश्क़ से गर यूँ डर गए होते
- उनकी अदाएँ उनके मोहल्ले में चलते तो देखते
- गीत-ओ-नज़्में लिख उन्हें याद करते हैं
- गुनाह तो नहीं है मोहब्बत करना
- दिल उनका भी अब इख़्तियार में नहीं है
- मेरा सफ़र भी क्या ये मंज़िल भी क्या तिरे बिन
- रोज़ जोश-ए-जुनूँ आए
- सिर्फ़ ईमान बचा कर मैं चला जाऊँगा
- सुनो तो मुझे भी ज़रा तुम
- हर सम्त इन हर एक पल में शामिल है तू
- विडियो
-
- ऑडियो
-