विरोध के स्वप्न और इंसानी कायरता

15-02-2022

विरोध के स्वप्न और इंसानी कायरता

जितेन्द्र 'कबीर' (अंक: 199, फरवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

आज मेरे स्वप्न में—
 
पेड़ों ने हड़ताल की
परिंदों के आज़ादी से
आकाश में उड़ने पर
लगे प्रतिबंधों के विरोध में, 
इसके परिणामस्वरूप
अपने कट जाने के भय से 
सहमे हुए से वो
मुझे नज़र नहीं आए। 
 
नदियों ने हड़ताल की
मछलियों के आज़ादी से
जल में विचरने पर
लगे प्रतिबंधों के विरोध में, 
इसके परिणामस्वरूप
अपना रास्ता बदले जाने के भय से
सिकुड़ी हुई सी वो
मुझे नज़र नहीं आई। 
 
पर्वतों ने हड़ताल की
हवाओं के आज़ादी से
भूमंडल में बहने पर
लगे प्रतिबंधों के विरोध में, 
इसके परिणामस्वरूप
ख़ुद को खोखला 
कर दिए जाने के भय से
शीश झुकाते से वो
मुझे नज़र नहीं आए। 
 
लेकिन हम इंसानों में 
बहुत दुर्लभ है
विरोध की ऐसी प्रवृत्ति 
ख़ासकर तब 
जब हमें हो आशंका
अपना नुक़्सान हो जाने की
किसी दूसरे के हित में
बोलने पर, 
उसके बजाए
हम ताक़तवर के समर्थन में
रख देते हैं ताक़ पर अक़्सर
अपनी सारी समझदारी, 
न्यायप्रियता, संवेदनशीलता
और बहुत बार इंसानियत भी
अपना फ़ायदा कहीं नज़र आने पर। 

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