इंसान का दिमाग़ी विलास

01-05-2021

इंसान का दिमाग़ी विलास

जितेन्द्र 'कबीर' (अंक: 180, मई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

भूख से पीड़ित इंसान
भूल कर अपनी सारी शर्म-लिहाज़
रोटी के एक टुकड़े के ख़ातिर
त्याग दे सकता है
सामाजिक नैतिकता के सारे आयाम,
भूखे पेट ने सिखाया है उसे
कि वास्तव में रोटी ही है 
उसका भगवान
और दुनिया में ज़्यादातर लोगों की आस्था
है केवल भरे हुए पेट का विलास।
 
अस्तित्व को जूझता इंसान
भूल कर अपनी सारी धर्म-जात
अपनी जान बचाने की ख़ातिर
त्याग दे सकता है
जन्म से ओढ़ाए गये धर्म-जाति संस्कार,
ज़िंदा बचे रहने की ज़द्दोजेहद ने
सिखाया है उसे
कि वास्तव में अपना अस्तित्व बनाए रखना
ही है जीव का एकमात्र धर्म
और दुनिया की बाक़ी सब धर्म-जात
हैं केवल इंसान के दिमाग का वक़्ती विलास।

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