जो सबसे ज़रूरी है

15-12-2021

जो सबसे ज़रूरी है

जितेन्द्र 'कबीर' (अंक: 195, दिसंबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

एक दृश्य अक़्सर दिख जाता है
मुझे अपने आस-पास . . . 
 
चार कंधों पर अपनी आख़िरी यात्रा पर
निकले इंसान को सम्मान देते लोग, 
सभी शुभचिंतक नहीं रहते उनमें
होते हैं बहुत से वो भी
जिनसे रहा उसका उम्र भर मनमुटाव ही, 
 
शवयात्रा में शामिल होते हैं
बहुत से जानने वाले लेकिन कई होते हैं
उस शख़्स के नाम, जाति, स्टेटस से
अनजान भी, 
कुछ पुण्य कमाने की लालसा में वो
मृतक को देते हैं आख़िरी प्रणाम भी, 
 
यह दृश्य देखकर लगता है मुझे
कि हमारे समाज में मौत के समय
विभिन्न जातियों एवं समुदायों में एकता
इतनी भी दुर्लभ बात नहीं, 
 
जानते हो कि दुर्लभ बात क्या है? 
जीवन के महत्त्वपूर्ण अवसरों पर
समस्त समुदायों एवं जातियों का 
एक साथ खड़ा होना, 
न्याय के लिए, 
सच्चाई के लिए, 
सामाजिक सद्भाव के लिए, 
दुखी एवं वंचितों के लिए, 
तरक्की एवं ख़ुशहाली के लिए
और सबसे ज़रूरी इन्सानियत के लिए
सबका एक साथ खड़ा होना। 

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