दुनियादारी

15-05-2022

दुनियादारी

जितेन्द्र 'कबीर' (अंक: 205, मई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

बड़े ख़ुश थे सभी
चुप रहा करते थे जब तक, 
ज़रा सी ज़ुबान जो खोली
तो शिकवे हज़ार हो गये। 
 
बड़ी तारीफ़ें होती थीं
जब करते थे सबके मन की, 
कभी जो अपने लिए किया 
तो अफ़साने हज़ार हो गये। 
 
बड़ा पसंद था साथ सबको
ख़र्च करते थे जब खुलकर, 
ज़रा सी मुट्ठी क्या बंद की
तो लोग दरकिनार हो गये। 
 
बड़े चर्चे थे दरियादिली के
मदद जब करते थे सबकी, 
एक बार जो हमने माँग लिया
तो बहाने हज़ार हो गये। 
 
बड़ा याद करते थे सब
काम पड़ता था जब तक, 
ज़रा सा बेकार क्या हुए
तो दर्शन भी दुश्वार हो गये। 
 
बड़ा इतराते थे सभी
तारीफ़ें जब तक निकलती रहीं, 
आलोचना जो एकाध निकली
तो फ़ासले हज़ार हो गये। 
 
साथ निभाने के थे वादे
पक्ष में थे हालात जब तक, 
वक़्त जो ख़िलाफ़ हुआ ज़रा सा
तो ग़ायब सरकार हो गये। 
 
पूछी जाती थी हर पसंद
कभी कभी जो आते थे, 
निवासी हुए जब से पक्के
तो पुराने अख़बार हो गये। 
 
अपने हाथों से सींचा था
जिन फूलों को बड़े प्यार से, 
बड़े ज़रा से क्या हुए
तो काँटे बेशुमार हो गये। 
 
स्नेह के धागों से
बँधे थे रिश्ते अब तक, 
अक़्लमंद ज़रा से क्या हुए
तो सब दुनियादार हो गये। 

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