प्रेम हमेशा रहेगा
जितेन्द्र 'कबीर'मजबूरियाँ सांसारिक हैं हमारी
ख़त्म हो जाएँगी देह के साथ ही,
लेकिन प्रेम अमर है आत्मा की तरह
रहेगा तब तक जब तक है जीवन
इस ब्रह्माण्ड में कहीं पर भी,
सूख कर गिर चुके पेड़ के ठूँठ से
उग आएगा यह बिना किसी के
उगाए ही,
जहाँ नहीं पहुँचती इंसान की दृष्टि
खिलेगा फूल बनकर वहाँ
बेशक चार दिनों के लिए ही सही,
बचाए रखेगा यह अपना वजूद
भीषण गर्मी में रेगिस्तान का
मरु उद्यान बनकर भी,
खोज लेगा संभावनाएँ जीवन की
बर्फ़ से लदे सुदूर ध्रुवों पर कहीं,
फूट पड़ेगा किसी के लिए
मोह बनकर
कठोर से कठोर हृदयों में भी,
प्रलय के बाद पनपता है
जिस तरह सृष्टि में जीवन कहीं,
प्रेम के लिए ही हुआ है
सृष्टि का जन्म,
ताक़तवर हों चाहे जितनी भी नफ़रतें
प्रेम को कभी मिटा पाएँगी नहीं।
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