जो कम लोग देख पाते हैं

15-04-2022

जो कम लोग देख पाते हैं

जितेन्द्र 'कबीर' (अंक: 203, अप्रैल द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

आग लगाई गई . . . 

ज़्यादातर लोगों ने उसमें
जलती देखी गाड़ियाँ, भवन
और दुकानें, 

कम ही लोग देख पाए 
उन गाड़ियों में
राख होती हुई किसी परिवार की 
रोज़ी-रोटी, 
जलता हुआ
किसी बच्चे का भविष्य, 
किसी नौकरी पेशा वाले के
आने-जाने का साधन
और जीवन भर की बचत से
साकार किया गया किसी का सपना, 
 
कम ही लोग देख पाए
उन भवनों में
राख होती हुई न जाने कितने लोगों की
जमा पूँजी, 
नष्ट होता किसी परिवार के
सिर के ऊपर छत होने का
इत्मीनान 
और सबसे ज़रूरी
इंसान का इंसान पर से उठता, 
धुआँ-धुआँ होता विश्वास, 
 
ज़्यादातर लोगों ने देखा
आग लगाकर 
तबाही मचाने वालों को, 
 
कम ही लोग देख पाए
परदे के पीछे से
उस आग के लिए नफ़रती तरकीबों 
एवं जलावन का
प्रबंध करने वालों को, 
जलती हुई आग में 
घी डालकर उसे और भी ज़्यादा 
भड़काने वालों को
और ऐसी गतिविधियों में संलिप्त
अपराधियों को क़ानून के
चंगुल से बचाकर
किसी धर्म अथवा जाति विशेष का हीरो
बनाने वालों को। 

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