सुरंगमा यादव माहिया – 001
डॉ. सुरंगमा यादवमाहिया
1.
रीता मन का प्याला
माँगी प्रेम सुधा
तुमने विष भर डाला।
2.
तेरा कुछ दोष नहीं
हाथों में मेरे
है प्रेम लकीर नहीं।
3.
तुझको ना भाये हैं
मौसम कोई भी
जो संग बिताये हैं।
4.
भारत की नारी है
उसका जीवन तो
हर दुःख पर भारी है।
5.
नाचूँ धुन पर तेरी
भायी ना तुमको
कोई कोशिश मेरी।
6.
हम शिकवे भुला देंगे
फिर न सताओगे
वादा पहले लेंगे।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- पुस्तक समीक्षा
-
- दूधिया विचारों से उजला हुआ– 'काँच-सा मन'
- भाव, विचार और संवेदना से सिक्त – ‘गीले आखर’
- भावों का इन्द्रजाल: घुँघरी
- विविध भावों के हाइकु : यादों के पंछी - डॉ. नितिन सेठी
- संवेदनाओं का सागर वंशीधर शुक्ल का काव्य - डॉ. राम बहादुर मिश्र
- साहित्य वाटिका में बिखरी – 'सेदोका की सुगंध’
- सोई हुई संवेदनाओं को जाग्रत करता—पीपल वाला घर
- सामाजिक आलेख
- दोहे
- कविता
- कविता-मुक्तक
- लघुकथा
- सांस्कृतिक आलेख
- शोध निबन्ध
- कविता-माहिया
- कविता - हाइकु
- कविता-ताँका
- साहित्यिक आलेख
- विडियो
- ऑडियो
-