दर्प

डॉ. सुरंगमा यादव (अंक: 195, दिसंबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

नफ़रत का हथियार दिखाकर
गीत प्रेम के कहते गाओ
 
हम बारूद बिछाते जाएँ
तुम गुलाब की फूल उगाओ
 
लपटों में हम घी डालेंगे
अग्नि परीक्षा तुम दे जाओ
 
ठेकेदार हैं हम नदिया के
कूप खोद तुम प्यास बुझाओ
 
हम सोपानों पर चढ़ जाएँ
तुम धरती पर दृष्टि गढ़ाओ
 
माला हम बिखराएँ तो क्या! 
मोती तुम फिर चुनते जाओ
 
सिंहासन पर हम बैठेंगे
तुम चाहो पाया बन जाओ
 
फूलों पर हम हक़ रखते हैं
तुम काँटों से दिल बहलाओ
 
अधिकारों का दर्प हमें है
तुम कर्त्तव्य निभाते जाओ
 
कभी शिकायत कोई न करना
अधरों पर मुस्कान सजाओ
 
शर्तों के कंधों पर हँसकर
संबंधों का बोझ उठाओ। 

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