रणभेरी

डॉ. सुरंगमा यादव (अंक: 277, मई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

पल में क्या से क्या हो गया समझ नहीं ये कुछ आया
ख़ुशी रुदन में बदल गयी थी, ख़ूनी मंज़र था छाया 
अभी सजा सिंदूर माँग में, मेहँदी का रंग गहराया
ख़ुशियाँ सारी ढेर कर गया क्षण में आतंकी साया 
कायरता भी शर्मसार है, ऐसा क़त्लेआम किया
सिंदूरी सपनों को पल में, अरथी पर है सुला दिया 
माँ का सूना आँचल कहता, “लाल कहाँ तुम चले गये"
वापस आए नहीं दुबारा किस पापी से छले गये 
नाम धर्म का लेकर अपने धर्म को भी वे लजाते हैं
खाने के लाले हैं घर में ख़ैरात माँग इतराते हैं 
धर्म नहीं है उनको प्यारा, नफ़रत-हिंसा प्यारी है 
अपनी क़ौमों के माथे पर लिखते वे गद्दारी हैं
दहशतगर्दी फैलाना ही धर्म जिन्होंने माना है
इंसानी जानों की क़ीमत उनको क्या समझाना है 
शृगालों ने ख़ुद ही आकर शेरों को ललकारा है
उनको दण्डित करना ही अब पहला धर्म हमारा है
प्रेम-अहिंसा धर्म हमारा, तब तक हमें सुहाता है
शत्रु हमारी ओर न जब तक अपनी आँख उठाता है
दुष्ट दलन के लिए कृष्ण को चक्र चलाना पड़ता है
मर्यादा पुरुषोत्तम को भी धनुष उठाना पड़ता है
जिसको प्रेम-शांति की भाषा अब तक कभी नहीं भायी
उसे शस्त्र की भाषा में समझाने की अब बेला आयी
जिसे ‘सीजफायर’ में भी बस ‘फायर’ याद ही रहता है
उसके इरादे ‘सीज़’ करें हम बच्चा-बच्चा कहता है 
धोखे का ही रक्त रगो में जिसकी बहता रहता है
उसकी क्रूर-कुचालों की इतिहास सच्चाई कहता है
सेना की रणभेरी ने अब ऐसा राग सुनाया है
दहशत फैलाने वाला दिल, ख़ुद दहशत में आया है
केवल ये ‘सिंदूर’* नहीं है, शिव का तांडव नर्तन है
वे भी बचा नहीं पायेंगे, जिनका मिला समर्थन है 

(आपरेशन सिंदूर)*

1 टिप्पणियाँ

  • 15 May, 2025 05:27 PM

    सामयिक घटना का जैसा बयान किया है, वह विशिष्ट है, हार्दिक शुभकामनाएँ।

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