पर्व पर आनंद मनाऊँ कैसे?
अंकुर सिंह
देखी थी रोशनी जिन अपनों संग,
बिछुड़ उनसे दीप जलाऊँ कैसे?
रूठे बैठे हैं जो अपने सगे संबंधी,
बिन उनके मैं तिमिर हटाऊँ कैसे?
रिश्तों में उपहार साथ मिला था,
रस्म निभाने का बात मिला था।
फिर उनके बिन पर्व मनाऊँ कैसे?
जिनसे जन्मों का साथ मिला था॥
मेरे अपने मुझसे मुख मोड़ बैठे हैं,
फिर ग़ैरों संग दीप जलाऊँ कैसे?
त्योहारों पर छूटा यदि साथ अपना,
तो इस पर्व पर आनंद मनाऊँ कैसे?
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