बिखरे ना परिवार हमारा
अंकुर सिंह
भैया न्याय की बातें कर लो,
सार्थक पहल इक रख लो।
एक माँ की हम दो औलादें,
निज अनुज पे रहम कर दो॥
हो रही परिवार की किरकिरी,
गली, नुक्कड़ और बाज़ारों में।
न्यायपूर्ण आपसी संवाद छोड़,
अर्ज़ी दिए कोर्ट कचरी थानों में॥
लिप्सा रहित हो सभा हमारी,
निष्पक्ष पूर्ण हो संवाद हमारा।
मैं कहूँ तुम सुनों तुम कहो मैं,
ताकि ख़त्म हो विवाद हमारा॥
कर किनारा धन दौलत को,
भाई बन कुछ पल बात करो।
माँ जैसे देती रोटी दो भागों में,
मिलकर उस पल को याद करो॥
हर लब पे अपनी कानाफूसी,
बैरी कर रहे अपनी जासूसी।
बिन माँ बाप का अनुज तुम्हारा,
माँ बाप बनके आज न्याय करो॥
भैया, गर्भ एक लहू एक हमारा,
कंधों पे झूलने वाला मैं दुलारा।
आओ मिलकर रोक दे दूरियाँ,
ताकि बिखरे ना परिवार हमारा॥
ताकि बिखरे ना . . . . . . . . . . .
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