भ्रष्टाचार बहुत है

01-09-2022

भ्रष्टाचार बहुत है

अंकुर सिंह (अंक: 212, सितम्बर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

राजू और उसके दोस्तों जैसे ही स्टेशन पर पहुँचे उन्हें पता चला कि ट्रेन दो घंटे लेट हैं। उसके बाद वह सभी दोस्त एक बेंच पर बैठे अपने स्मार्टफोन पर अंगुलियों को घुमाने लगे। सब अपने मोबाइल में व्यस्त थे, तभी राजू का ध्यान बग़ल के बेंच पर बैठे कुछ लोगों पर गया जिनकी औसत आयु पचास वर्ष थी। वह लोग आपस में देश-विदेश से जुड़े राजनीति, महँगाई, चिकित्सा, शिक्षा, इत्यादि मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान कर रहे थे और कुछ मुद्दों पर आपसी बहस भी। इसी क्रम में वह लोग बढ़ते भ्रष्टाचार पर बात करने लगे। उन लोगों की बातें राजू काफ़ी ग़ौर से सुन रहा था। 

उनके बातों ने राजू को उसके गाँव की याद दिला दी कि कैसे उसने गाँव के आँगनबाड़ी में काम करने वाली प्रर्मिला काकी के भ्रष्टाचारों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हुए उनके विभाग से निष्पक्ष जाँच करने का निवेदन किया था। विभाग ने भी मामले में तत्परता दिखाते हुए तत्काल एक जाँच टीम गाँव में भेज दी थी। तब राजू ने उन्हें प्रर्मिला काकी के रजिस्टर को दिखाते हुए कहा, “देखिए सर, रजिस्टर में ऐसे लोगों का नाम भी लाभार्थी के रूप में लिखा गया है जो वर्षों से गाँव नहीं आए और इनमें से कुछ तो सरकारी नौकरी करते हुए शहर में ही बस गए है।”

प्रर्मिला काकी भी लगाए जा रहे आरोपों का जवाब देने में कभी सकपकाती तो कभी उसे बेबुनियाद कहते हुए अपने पति विनोद के तरफ़ देख इशारों में पूछती कि क्या बोलूँ अब मैं? आख़िरकार, अंत में जाँच टीम ने निर्णय लिया कि गाँव के पन्द्रह-बीस घरों में सर्वे करा के देख लिया जाए की उन्हें आँगनबाड़ी की सुविधाएँ मिलती हैं या नहीं। राजू भी जाँच टीम के इस निर्णय पर सहमत हो गया। आख़िर हो भी क्यों न पिछले कई वर्षों से उसने गाँव के लोगों से कहते हुए जो सुना था, “अरे बच्चवा! विनोदवा क मेहरारु आँगनबाड़ी से मिले वाला समानवा कोनो महीना देवेले कोनों महीना ना देवेले, आख़िर सरकार त हर महीने भेजत होई न, लगला प्रर्मिलियाँ बेच देवेले।”

राजू ने भी सोचा जो लोग वर्षों से प्रर्मिला काकी के कामों का उलहना देते हैं। वह लोग टीम के सामने अपनी बात ज़रूर रखेंगे कि काकी उनके दुधमुँहे बच्चों को सरकार द्वारा मिलने वाले लाभों से वंचित रखती है। ये सोच राजू भी जाँच टीम, प्रर्मिला काकी और आस-पास के कुछ लोगों को साथ लेकर घर-घर सर्वे कराने लगा। 

ये क्या? लोगों की प्रतिक्रिया देख राजू एकदम से सन्न हो गया। कल तक जो लोग प्रर्मिला काकी के कार्यों में कमियाँ गिना रहे थे, वही आज उनके पक्ष में सकारात्मक जवाब दे रहे हैं। ये देख जब राजू ने लोगों से कहा, “आप लोग डरिए मत, जो सच है वह साहब के सामने बता दीजिए। आप लोगों के दुधमुँहे बच्चे को उसका पूरा हक़ मिले, इसके लिए ये जाँच टीम अपने गाँव में आई हैं।”

इसपर कल तक शिकायत करने वाले बहुत सारे लोगों ने निरुत्तर हो सिर नीचे झुका लिया मानों उनकी अंतरात्मा मर-सी गई हो। कुछ ने थोड़ी हिम्म्मत दिखा राजू से हाथ जोड़ते हुए कहा, “बाबू, हम लोगन जानत हई, कि विनोदवा क मेहरारू बच्चन लोगन के मिले वाला राशन बेच खाले। पर बेटवा!, आज अफसर लोगन के सामने बोल के विनोदवा से दुश्मनी के मोल लेई। ऊ विधायक जी क खास बा औरु दरोगा सिपाही लोगन से कह-सुन के कोनो मर-मुकदमा में फँसा दि हमने के।”

सर्वे पूरा होने पर जाँच टीम ने प्रर्मिला को आँख दिखाते हुए कहा, “देखिए सर्वे के अनुसार आपने लोगों तक सरकारी सुविधा पहुँचाई है। परन्तु, आपके रजिस्टर के ऐसे भी लाभार्थियों के नाम है जो कई सालों से बाहर रहकर नौकरी करते हैं, इसके कारण आप पर विभागीय करवाई होगी।”

इतना कह जाँच टीम जाने को तैयार होने लगी तभी प्रर्मिला काकी के पति विनोद उन्हें बंद मुट्ठी पकड़ाते हुए निवेदन भरे स्वर में कहा “सर, थोड़ा रहम करियेगा हम लोग भी आपके अपने हैं।”

यह सब देख राजू ख़ुद को असहाय महसूस कर सोच रहा था कि गाँव के लोग आज तक प्रर्मिला काकी के कार्यों पर बड़ी-बड़ी तंज़ कसते और उन्हें भ्रष्ट कहते थे। परन्तु, आज यही लोग एक डर के कारण अपने हक़ की बात कहने की जगह चुप्पी साध एक भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं। 

इन्हीं सब में राजू खोया था तभी उसे लगा कोई हिलाकर उसे आवाज़ दे रहा हैं। राजू ने पीछे मुड़कर देखा तो उसके दोस्त थे और ट्रेन आने वाली है ये बताते हुए पूछने लगे, “क्या हुआ राजू, कहाँ खो गए थे? काफ़ी देर से हम सब तुम्हें आवाज़ दे रहे थे।”

राजू ने अपने बैग को कंधे पर टाँगते हुए कहा, “कहीं नहीं यार, चलो ट्रेन पकड़ते हैं, भ्रष्टाचार बहुत है।”

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
सांस्कृतिक कथा
लघुकथा
कहानी
ऐतिहासिक
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में