काश मैं मोबाइल होती
अंकुर सिंह“काम बहुत था यार आज, बुरी तरह से थक गया हूँ,” सोफ़े पर अपना बैग रखते हुए अजीत ने कहा।
“अजीत जल्दी से फ़्रेश हो जाओ, तब तक मैं चाय बना देती हूँ।”
“ठीक है, मधु!” कहते हुए अजीत बाथरूम में चला गया।
अजीत के फ़्रेश होकर हॉल में आते ही माधुरी चाय-पकौड़े लेकर उसके पास पहुँची। चाय पीते हुए माधुरी ने पूछा, “अजीत! आजकल आपका घर आना काफ़ी लेट हो रहा है, काम का लोड कुछ ज़्यादा है क्या?”
“पूछो मत मधु, कंपनी का दिया टारगेट पूरा करने का बहुत ज़्यादा प्रेशर है,” अजीत ने गहरी साँस लेते हुए कहा।
“अजीत! हमारे घूमने का प्लान कब से है? दो-तीन महीने बाद चलने को बोले थे, पर ऑफ़िस के कामों में तो आप भूल ही गए इसे।”
“क्या यार, तुम्हें घूमने की पड़ी है! यहाँ काम का इतना प्रेशर है कि सुबह ऑफ़िस जाने के बाद लेट नाइट आना होता है,” अजीत ने उखड़े मूड में जवाब दिया।
अजीत का ग़ुस्सा देख माधुरी ने चुपचाप चाय ख़त्म की और किचन में चली गई। इधर अजीत भी अपने स्मार्टफोन (मोबाइल) में बिज़ी हो गया। डिनर तैयार होने के बाद माधुरी ने अजीत को कई बार आवाज़ दी, परन्तु अजीत अब भी अपने स्मार्टफोन में लगा रहा। माधुरी को ये समझ में नहीं आ रहा था कि अजीत वास्तव में बिज़ी है या उसे अनसुना कर रहा है। ख़ैर, कुछ समय बाद अजीत डाइनिंग टेबल पर आया और फिर दोनों ने डिनर किया।
थोड़ी देर बाद दूध की गिलास लेकर माधुरी बेडरूम में आई। वहाँ पहले से मौजूद अजीत को फिर से मोबाइल में बिज़ी देख माधुरी का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया परन्तु उसने अपने आप को शांत रखते हुए दूध के गिलास को टेबल पर रखकर रूम को व्यवस्थित करने में लग गई और उधर अजीत अपने स्मार्टफोन में लगा रहा। थोड़ी देर बाद कमरे में छाई शान्ति को ख़त्म करते हुए माधुरी ने कहा, “फोन में क्या कर रहे हो अजीत, जब से आए हो तब से फोन में लगे हो।”
“कुछ नहीं मधु, ऑफ़िस के कुछ ई-मेल चेक करके फ़्री हुआ तो सोचा ज़रा सोशल मीडिया की प्रोफ़ाइल चेक कर लूँ। यार, सुबह से टाइम ही नहीं मिला किसी यार-दोस्त के पोस्ट पर लाइक, कमेंट करने का।”
“हाँ, क्यों नहीं अजीत, आभासी दुनिया के यार दोस्तों की भी ख़ैर-खबर ज़रूरी है, भले ही . . .” माधुरी ने तंज़ कसते हुए कहा।
“भले ही क्या मधु . . .?” माधुरी के अधूरे शब्दों पर अजीत ने टोका।
“कुछ नहीं अजीत, आप अपना काम करो। आपके लिए सिर्फ़ ऑफ़िस का काम और आभासी दुनिया के मित्र-यार ही हैं, हम तो कुछ भी नहीं।”
माधुरी को बीच में टोकते हुए अजीत ने कहा, “प्लीज़, फ़ालतू दिमाग़ मत ख़राब करो! पता नहीं तुम्हें कितनी बेरोज़गारी है, ऊपर से ऑफ़िस में इतना कम्पटीशन और रही बात ऑफ़िस के कामों की तो मैं ख़ुद के लिए जॉब नहीं करता बल्कि परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए करता हूँ।”
“सहमत हूँ अजीत कि नौकरी में काम का प्रेशर बहुत रहता है। ख़ासकर जब नौकरी प्राइवेट हो तो और भी ज़्यादा । आप ये प्रेशर हमारी ख़ुशियों के लिए लेते हैं। परन्तु, मुझे इन ख़ुशियों के साथ-साथ आपके दो पल भी चाहिएँ जिसमें मैं अपने दिल की बात आपसे कह सकूँ,” माधुरी ने कहा।
“पर मधु . . .!”
“परररररर . . . कुछ नहीं, अजीत मैं आपसे आपके फ़ुर्सत के दो पल चाहती हूँ जिसमें मैं आपसे अपने दिल की बात कह सकूँ। लेकिन, आपका अधिकतर समय अपने ऑफ़िस में और उससे बचा समय मोबाइल संग बीतता है। आपके साथ रहकर भी मैं ख़ुद को अकेला महसूस करती हूँ और मन-ही-मन यही सोचती हूँ कि काश मैं आपकी बीबी ना होकर आपका मोबाइल होती, जिसे आसानी से आपके दो पल मिल जाते हैं!”
इतना कहते-कहते माधुरी के कंठ भर आया और उसने ख़ुद को चादर में छुपा लिया।
इन हालत में अजीत भी ख़ुद को असहज महसूस करने लगा।
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