धन के संग सम्मान बँटेगा
अंकुर सिंहधन दौलत के लालच में,
भाई भाई से युद्ध छिड़ा है।
भूल के सगे रिश्ते नातों को,
भाई भाई से स्वतः भिड़ा है॥
एक ही माँ की दो औलादें,
नंगी खड्गें लिए खड़ी हैं।
ये दृश्य नहीं किसी रण का,
दोनों हथियार लिए अड़ी हैं॥
शोणित बहे किसी भी दल का,
माँ का ही आँचल फटेगा।
भले ये धन दौलत की रंजिश,
लेकिन भाई-भाई से बँटेगा॥
कल जो थे इक माँ के प्यारे,
प्रेम भाव ममता के न्यारे।
आज थोड़े स्वार्थ के चलते
माता की ममता के हत्यारे॥
खेले थे जो माँ के आँचल
कोर्ट में अर्ज़ी दिए पड़े हैं।
कोई कृष्ण बनकर मध्यस्थ
समझाए जो अड़े खडे़ हैं॥
स्वार्थ हेतु घर का बँटवारा
होना अच्छी बात नहीं है।
इसके लिए आपस में लड़ना
अच्छी ये सौग़ात नहीं है॥
लड़िए मगर प्रेम के ख़ातिर
एक दूजे का ध्यान रखें।
कभी क्रोध आ भी जाए तो
खड्ग को अपनी म्यान रखें॥
भाई का हिस्सा भाई ही तो
खाता कोई ग़ैर नहीं है।
इतना समझाये न समझे
तो आगे अब ख़ैर नहीं है॥