बिखरे ना प्रेम का बंधन

01-11-2024

बिखरे ना प्रेम का बंधन

अंकुर सिंह (अंक: 264, नवम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

अबकी जो तुमसे बिछड़ा, 
जीते जी मैं मर जाऊँगा। 
भले रहूँ जग में चलता फिरता, 
फिर भी लाश कहलाउँगा॥

रह लो मुझ बिन तुम शायद, 
पर, जहाँ मेरा तुम बिन सूना। 
छोड़ तुम्हें अब मैं ना जाऊँगी, 
भूल गई क्यों ऐसा कहा अपना? 
 
एक प्रेम तरु की हम दो डाली, 
कैसे तुम बिन हवा के टूट गई? 
जीना चाहा था तुम्हारे वादों संग, 
फिर तुम मुझसे क्यों रूठ गई? 
 
कभी तुम सुना देती थी कभी मैं, 
लड़ रातें सवेरे एक हो जाते थे। 
जिस रात तुम्हें पास न पाया, 
उस रात मेरे नैना नीर बहाते थे॥
 
सात जन्मों का है जो वादा, 
हर हाल है उसे निभाना। 
मिलकर हम खोजेंगे युक्ति, 
जग बना यदि प्रेम में बाधा॥
 
अबकी जो तुमसे बिछड़ा, 
आहत मन से टूट गया हूँ। 
पढ़ रही हो तो वापस आओ, 
तुम बिन मैं अधूरा हूँ . . .॥
 
माँगता हूँ ग़लतियों की क्षमा, 
हाथ जोड़ कर रहा कर वंदन। 
ग़लतियों को मेरी बिसरा दो, 
ताकि बिखरे ना प्रेम का बंधन॥

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