15 - नाट्य उत्सव “अरंगेत्रम”
सुधा भार्गव5 मई 2003
अरंगेत्रम:
शाब्दिक अर्थ है रंगमंच पर प्रथम प्रदर्शन। अरंगेत्रम के अवसर पर शिष्या अपनी कला की दक्षता को सार्वजनिक रूप से प्रमाणित करती है और इसके बाद गुरु उसे स्वतंत्र कलाकार की तरह अपनी कला के प्रदर्शन की अनुमति देता है।
डॉक्टर भार्गव की पुत्री नेहा का अरंगेत्रम (Arangetram) नाट्य उत्सव 4 मई सेंटर पॉइंट थियेटर, ओटावा में होना था। उसका निमंत्रण कार्ड पाकर बहुत ही हर्ष हुआ। विदेश में ऐसे भारतीय कला प्रेमी! आश्चर्य की सीमा न थी। शाम को जब हम वहाँ पहुँचे, हॉल खचाखच भरा हुआ था। केवल भारतीय ही नहीं उनके अमेरिकन, कनेडियन मित्रगण भी थे। करीब चार घंटे का कार्यक्रम था। नेहा ने भरत नाट्यम नृत्य शैलियों पर आधारित लुभावने नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों का मन मोह लिया। हॉल करतल ध्वनि से बार-बार गूँज उठता।
इस रस्म में मंच पर सार्वजनिक रूप से नृत्य के प्रथम प्रदर्शन के बाद छात्र यह सिद्ध कर देता है कि वह इस कला में पूर्ण पारंगत है। दक्ष कलाकार की हैसियत से वह स्वतंत्र रूप से विभिन्न कार्यक्रमों का प्रस्तुतीकरण कर सकता है।
नेहा की गुरू डॉ. बासंथी श्रीनिवासन (Dr. Vasanthi Srinivasan) हैं जो ओटावा में नाट्यांजलीस्कूल की संस्थापक है। वहाँ भारत नाट्यम सिखाया जाता है। आजकल वे स्कूल की डायरेक्टर हैं। उन्होंने ओटावा यूनिवर्सिटी से Ph.D. की और 1989 से ही फ़ेडेरल गवर्नमेंट मेँ काम कर रही हैं। उन्होंने अनेक एक्जूयटिव पदों पर काम किया। आजकल ओंटरिओ क्षेत्र में कनाडा स्वास्थ्य विभाग में रीज़नल एक्जूयटिव डायरेक्टर हैं। वासनथी जी ने भारत नाट्यम की की तंजौर शैली को आगे बढ़ाया। इनके गुरू श्री टी के मरुथप्पा थे। कलाविद डॉ वासनथी नृत्यकलानिधि की उपाधि से सम्मानित किया गया।
नेहा उनकी 50वीं छात्रा है जिसने अरंगत्रम किया। हायर सेकेंडरी की इस छात्रा के लिए सभी की शुभकामनाएँ थीं कि अध्ययन के साथ-साथ नृत्य के क्षेत्र में भी नाम कमाए, उसके परिवार और भारत का नाम सूर्य किरणों की भाँति झिलमिलाए।
इस उत्सव की सफलता का श्रेय नेहा की दस वर्ष की नाट्य साधना को जाता है। राजस्थान के लोकनृत्यों में उसकी सदैव से रुचि रही है। उसने न जाने कितनी बार मंच पर अपना कला प्रदर्शन किया है। कई बार स्वेच्छापूर्वक नृत्य शिक्षिका रही है। खेलों में भी वह किसी से कम नहीं । हॉकी मेँ उसकी विशेष दिलचस्पी है। शेक्स्पीयर और मीरा उसके प्रिय कवि है। इस प्रकार हिन्दी – अँग्रेज़ी दोनों साहित्य में उसने योग्यता पा ली है। उसका कविता लेखन इस बात का प्रमाण है।
डॉ. भार्गव काफ़ी समय से यहाँ हैं। मेरे बेटे–बहू को अपने बच्चों के समान समझते हैं। किसी भी पारिवारिक – धार्मिक पर्व पर वे उन्हें बुलाना नहीं भूलते। चाँद भी उनके नेह निमंत्रण की अवहेलना नहीं कर पाता। सच, प्रेम से इंसान खिंचता चला जाता है।
विशेष - यह संस्मरण काफी पहले लिखा गया है। प्रिय नेहा और उनकी गुरू इस समय उन्नति के चरम शिखर पर होंगे। उनको मेरी ओर से मुबारकबाद।
क्रमशः-
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