19 - कनेडियन माली
सुधा भार्गव16 मई 2003
हम सबको भगवान ने बनाया है। वही हमारा पालनहारा है। पर पेड़-पौधों का भगवान माली है। वही बीज बोकर उन्हें उगाता है। उसी की देखरेख में वे बड़े होकर फल फूलों से लदे धरती माँ की शोभा बढ़ाते हैं।
कनाडा में ऐसे माली घर-घर बसते हैं, जिन्हें प्रकृति से अगाध प्यार है। असल में कनाडावासियों को बाग़बानी का बड़ा शौक़ है। महिलाएँ भी इस काम में पीछे नहीं रहती। कामकाजी महिलाएँ रोज़ शाम को अपने बग़ीचे की सुंदरता निहारते मिलेंगी। ज़मीन खोदने, घास हटाने का काम, बीज बोने, पौधों में पानी देने आदि से ज़रा भी नहीं कतरातीं। मुझे लगता है यह शौक़ उनके खून में है। बच्चे तक माँ का हाथ बँटाते हैं। बचपन से ही उनके हाथ में छोटी-छोटी खुरपी, बाल्टी थमा देते हैं जो खिलौनों से कम नहीं दीखतीं। खेल-खेल में ही वे फूल-पौधों के बारे में बहुत कुछ जान जाते हैं और उनसे उन्हें लगाव हो जाता है।
च्चा छोटा हो या बड़ा, एक हो या दो, काम महिलाओं के कभी स्थगित नहीं होते। वे बहुत मेहनती और ऊर्जावान होती हैं। गोदी का बच्चा हो तो उसे प्रेंबुलेटर में लेटा खुरपी चलाने लगती हैं। बच्चा घुटनों बल चलता हो तो कंगारू की तरह आगे या पीछे एक थैली बाँध लेती हैं और इस बेबी केरियर में बच्चे को लिए अपने काम निबटाती हैं। उसमें बच्चा आराम से बैठा रहता है और हिलते-डुलते सो भी जाता है। सबसे बड़ी बात बच्चे को इसका आभास रहता है कि वह अपनी माँ के साथ है।
छुट्टी के दिन तो पति-पत्नी दोनों ही अपनी छोटी से बग़ीची को सजाने-सँवारने में लग जाते हैं। बग़ीचा देखने लायक़ होता है। जगह-जगह रोशनी जगमगाती मिलेगी। लाल, पीले, नीले फूलों के बीच मिट्टी-काँच के बने मेंढक-मछली-बतख दिखाई देंगे जो सचमुच के प्रतीत होते हैं। प्राकृतिक दृश्य उपस्थित करने के लिए उनके सामने पानी से भरा बड़ा सा तसला रख दिया जाता है या छोटा सा कुंड बना देंगे। इनकी ख़ूबसूरती देख मेरी निगाहें तो रह-रह कर उनमें ही अटक जातीं।
अपने बाग़ के फूलों को कभी मैंने उन्हें तोड़ते नहीं देखा। घर में फूल सजाने के लिए वे बाज़ार से ख़रीदकर लाते हैं। अपने घर-आँगन की फुलवारी को नष्ट करने की तो कल्पना भी नहीं कर सकते। यदि हम भी इनकी तरह फू ल-पौधों को प्यार करने लगें तो पेड़ कटवाकर धरती माँ को कष्ट देने की बात किसी के दिमाग़ में ही न आए।
*
यहाँ रहते रहते मेरा बेटा भी अच्छा ख़ासा माली बन गया है। बच्चे का घर में आगमन होने से काम कुछ बढ़ गया है इस कारण चाँद को बग़ीचा साफ़ करने में देरी हो गई। बग़ीचा साफ़ करना भी बहुत ज़रूरी था। शीत ऋतु में यह बग़ीचा बर्फ़ से ढका श्वेत-श्वेत नज़र आने लगा। जगह-जगह हिम के टीले बन गए। सूर्यताप से जैसे ही बर्फ ने पिघलना शुरू किया उसके नीचे दबी घास और पत्ते भीग गए। जल्दी ही सड़कर बदबू फैलाने लगे। इससे पड़ोसियों को एतराज़ भी हो सकता था।
अवसर पाते ही चाँद ने बाग़वानी करने के लिए कपड़े बदले। टोपी पहनकर दस्ताने चढ़ाए और उतर पड़ा पेड़-पौधों के जंगल में। लंबी-लंबी कंटीली झाड़ियाँ, सूखे-गीले पत्तों का ढेर, ढेर सी उगी जंगली घास को देख मैं तो सकते में आ गई-चाँद सा बेटा मेरा चाँद अकेले कैसे करेगा? तभी उसे गैराज से इलेक्ट्रिक हेगर, लॉनमोवर निकालते देखा। चाँदनी उसकी सहायता कर नहीं सकती थी। मैं और मेरे पति खड़े खड़े देखने लगे। पर ज़्यादा देर उसको अकेले इन मशीनों से जूझते देख न सके। हम दोनों ने आँखों-आँखों मे इशारा किया। अंदर जाकर पुराने कपड़े पहने, टोपी और दस्ताने पहनकर बाहर निकल आए। दरवाज़े पर ही 2-3 जोड़ी चप्पलें पड़ी थीं जिन्हें पहनकर घर के अंदर नहीं घुस सकते थे; उनको पहना और बाग़बानी करने निकल पड़े। हमें खुरपी, फावड़े चलाने का ज़्यादा अनुभव न था। तब भी बेटे की मदद करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थे।
हम पूरे कनेडियन माली लग रहे थे। चाँद हमें देखकर बड़ा ख़ुश हुआ। इसलिए नहीं कि उसे मददगार मिल गए बल्कि इसलिए कि इस उम्र में भी उसके माँ-बाप में जवानी का जोश है। वह बिजली के यंत्र की सहायता से घास-पत्तों को रौंदता, कट कट काटता चल पड़ा। मैं कचरे को दूसरे यंत्र की सहायता से कोने में इकट्ठा करने लगी। बाद में हमने मिलकर प्लास्टिक के बड़े-बड़े बोरों में भर मुँह बंद कर दिया। रात में चाँद उन्हें उठाकर अपने घर के सामने सड़क पर रख आया ताकि सुबह कचरे की गाड़ी आए तो बोरों को ले जाए।
थोड़ा-बहुत काम धीरे-धीरे करके बग़ीचे को इस लायक़ बना दिया कि उसमें बैठा जाए। यहाँ बड़ी सी मेज़ व दस कुरसियाँ पड़ी हैं। साथ ही इलेक्ट्रिक तंदूर भी एक कोने में रखा है। अब तो छोटी-छोटी पार्टियाँ वहीं होने लगीं। सुबह–शाम की चाय भी वहीं पीते हैं। सुबह की ताज़ी हवा और गुनगुनी धूप के बीच उड़ती तितलियों को देखते-देखते चाय की चुसकियाँ लेने का मज़ा कुछ और ही है।
क्रमशः-
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