04 - कनाडा एयरपोर्ट
सुधा भार्गव
10 अप्रैल 2003 कनाडा एयरपोर्ट पर बहू-बेटे दोनों ही लेने आए थे। दिल से तो मैं यही चाहती थी कि बहू शीतल एयरपोर्ट पर न आए क्योंकि उसका प्रसवकाल निकट था। उसे फुर्ती से अपनी ओर आते देखा, लगा तो बहुत अच्छा। गृहस्थी की गाड़ी को खींचने वाले दोनों पहिये समान रूप से सक्रिय नज़र आए। उन्होंने हमारे चरण स्पर्श किए और और सीने से लग गए। तीन वर्ष का वियोग क्षण भर में मिट गया। सफ़र की सारी थकान हम अपनी मंज़िल पर पहुँचते ही भूल गए। कार में एक दूसरे से नज़र टकराते ही आँखों में चमक आ जाती। मूक होकर भी हज़ार बात कह देते। कार रॉकेट बनी हवा को चीरती चिकनी सड़कों पर सरपट दौड़ रही थी। मेरी समझ में नहीं आया – ठंडे सुहावने मौसम में भी बेटे ने कार के शीशे चढ़ा रखे हैं और एयर कंडीशन चल रहा है। "यहाँ तो प्रदूषण भी नहीं है। ताज़ी हवा के झोंके आने के लिए खिड़कियों के शीशे नीचे कर दो," मैंने सलाह दी। उसने हमारी तरफ का शीशा थोड़ा सा हटा दिया। यह क्या! हवा के तीव्र झोंकों से हम आतंकित हो उठे। दूसरे कार की स्पीड भी बहुत तेज़ थी। साँय-साँय की आवाज ऐसी कर्णभेदी हो गई मानो जंगल में हलचल मच गई हो। "अरे बंद कर शीशा," मैं चिल्ला उठी। "बंद कर दूँ...," जान कर बेटा ज़ोर से बोला और हँसने लगा। "अब आया समझ में राज़ शीशे बंद रखने का।" रोज़लोन कोर्ट में घुसते ही उसके बंगले के सामने खड़े हो गए। सीट पर बैठे ही रिमोट कंट्रोल का बटन दबाने से खुल जा समसम की तरह गैराज का शटर ऊपर जाने लगा। लॉन्ड्री रूम, रसोईघर ड्राइंगरूम पार करते हुए ऊपर जाने लगे। बेटा बहुत विनोदी स्वभाव का है सो सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते उसका टेप रिकॉर्डर चालू हो गया। "माँ, सुबह-सुबह ताज़ी हवा खाने के चक्कर में नीचे का दरवाज़ा न खोल देना। अलार्म बज उठा तो पुलिस आन धमकेगी और पकड़कर ले जाएगी।" "हम क्या चोर है!" "चोर तो नहीं पर ख़तरे की घंटी तो बज जाएगी। सुबह उठकर एलार्म का गलेटुआ घोंटना पड़ता है।" "यहाँ भी चोरी होती है क्या? धनी राष्ट्रों में हमारे देश की तरह गरीबी कहाँ!" भार्गव जी बोले। "चोरी ग़रीब ही नहीं करता। आदत पड़ने पर अमीर भी चोरी कर सकता है। चोरी भी तो चौसठ कलाओं में से एक है।" "अरे वाह! पहले से क्यों नहीं बताया माँ। मैंने बेकार आई.आई.टी. में चार साल गँवाए, यही कला सीखता।" "ओह, तू तो बहुत खिजाता है। बस मेरी बात पकड़ ली।" शीतल हमारी बातों का आनंद उठा रही थी। व्यवस्थित मास्टर बेडरूम, बेबी रूम, से होते हुए हम अपने शयनागार में पहुँचे। स्वच्छ चादर व फूलदार लिहाफ हमारा इंतज़ार कर रहे थे। शीतल के हाथ का खाना खाकर कुछ ही देर में हम शुभ रात्रि कहते हुए उसमें दुबक गए। दिल्ली में तो मन में उथल-पुथल मची ही रहती थी कि बच्चे पराई संस्कृति में रह रहे हैं, कहीं बदल न जाएँ। न जाने किस विचारधारा से टकरा कर सुविधा के जाल में फँस जाएँ पर संस्कारों की जड़ें इतनी मज़बूत लगीं कि भटकन की कोई गुंजाइश नहीं दिखाई दी। विचारों की घाटियों से गुज़रते 2 बज गए। दिमाग़ ने कहा – सोने की कोशिश तो करनी ही पड़ेगी,कल से नए वातावरण से समझौता करने और उसे समझने का श्री गणेश हो जाएगा। कुछ भी हो हम 8 अप्रैल के चले 10 की रात कनाडा अपने घर तो पहुँच ही गए थे सो चिंतारहित चादर तान सो गए। क्रमशः- |
1 टिप्पणियाँ
-
आपकी कनाडा डायरी के चार अंक पढ़े,अच्छे लगे।एक दो डायरियों में डायरी विधा और यात्रा संस्मरण का मंजुल समन्वय है।भाषा साहित्यिक और शैली प्रवाह पूर्ण है।देश,धर्म आदि के अंतर के बाद भी मनुष्य की मानवतावादी दृष्टि को आपने बखूबी प्रस्तुत किया है।आपकी इन डायरियों में यह विचार योग्य कथन मिला है कि संस्कार यदि सही ढंग से पड़ें तो देश, काल के बदलाव से भी उनपर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ता है।अच्छी डायरी के लिए बधाई हो सुधा जी।
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- डायरी
-
- 01 - कनाडा सफ़र के अजब अनूठे रंग
- 02 - ओ.के. (o.k) की मार
- 03 - ऊँची दुकान फीका पकवान
- 04 - कनाडा एयरपोर्ट
- 05 - बेबी शॉवर डे
- 06 - पतझड़ से किनारा
- 07 - मिसेज़ खान का संघर्ष
- 08 - शिशुपालन कक्षाएँ
- 09 - वह लाल गुलाबी मुखड़ेवाली
- 10 - पूरी-अधूरी रेखाएँ
- 11 - अली इस्माएल अब्बास
- 12 - दर्पण
- 13 - फूल सा फ़रिश्ता
- 14 - स्वागत की वे लड़ियाँ
- 15 - नाट्य उत्सव “अरंगेत्रम”
- 16 - परम्पराएँ
- 17 - मातृत्व की पुकार
- 18 - विकास की सीढ़ियाँ
- 19 - कनेडियन माली
- 20 - छुट्टी का आनंद
- 21 - ट्यूलिप उत्सव
- 22 - किंग
- 23 - अनोखी बच्चा पार्टी
- 24 - शावर पर शावर
- 25 - पितृ दिवस
- 26 - अबूझ पहेली
- 27 - दर्द के तेवर
- 28 - विदेशी बहू
- 29 - फिलीपी झील
- 30 - म्यूज़िक सिस्टम
- 31 - अपनी भाषा अपने रंग
- 32 - न्यूयोर्क की सैर भाग- 1
- 33 - न्यूयार्क की सैर भाग-2
- 34 - न्यूयार्क की सैर भाग - 3
- 35 - न्यूयार्क की सैर भाग - 4
- 36 - शिशुओं की मेल मुलाक़ात
- 37 - अब तो जाना है
- 38 - साहित्य चर्चा
- 39 - चित्रकार का आकाश
- 40 - काव्य गोष्ठी
- लोक कथा
- विडियो
-
- ऑडियो
-