38 - साहित्य चर्चा
सुधा भार्गवसाहित्य चर्चा
23 अगस्त 2003
कनाडा में भी हिन्दी प्रेमियों की कमी नहीं। ओटावा में रहते हुए मैंने काफ़ी प्रयास किया कि यहाँ के कुछ वरिष्ठ प्रेमियों से मुलाक़ात हो जाए पर निराशा ही हाथ लगी। असल में मैंने यह प्रयास देर से शुरू किया दूसरे मैं भागीरथ महाराज के चक्कर में फँस गई। पिछले माह उन्होंने बहुत से कवियों और लेखकों के नाम गिनाकर हमें बहुत प्रभावित कर दिया था साथ ही वायदा भी किया कि आगामी कवि सम्मेलन में मुझे अवश्य बुलाकर ओटावा की कवि मंडली से परिचय कराएँगे। साथ ही कविता पाठ करने का मौक़ा देंगे। सुनते ही हम तो गदगद हो गए और अपना कविता संग्रह ‘रोशनी की तलाश में’ तुरंत उन्हें भेंट किया। कुछ ज़्यादा ही मीठी ज़बान में उनसे बातें करते रहे जब तक वे हमारे घर रहे। बड़ी ही बेसब्री से इनके आमंत्रण की प्रतीक्षा करने लगे पर वह दिन आया कभी नहीं। एक लंबी सी साँस खींचकर रह गए।
सविता जी से जो शीतल से परिचित हैं पता लगा कि 28 जून को तो वह कवि सम्मेलन हो भी चुका है जिसकी चर्चा मि. भागीरथ ने की थी। उस कवि सम्मेलन के संगठनकर्ता पूरा तरह से वे ही थे। अब हम क्या करते? हाथ ही मलते रह गए। लेकिन हमसे इतनी नाराज़गी! कारण कुछ समझ नहीं आया। कम से कम सूचना तो दे देते । हम इंतज़ार की गलियों में तो न भटकते।
सविता जी के कारण रश्मि जी से फोन पर मेरा परिचय हुआ। वे साहित्यिक गतिविधियों में बहुत गतिशील रहती हैं। उनके प्रयास से निश्चित हुआ कि 25 अप्रैल को सेंटर लाइब्रेरी के ओडोटोरियम में होने वाले कवि सम्मेलन में मुझे भाग लेने का मौक़ा मिलेगा। दुर्भाग्य से यह कार्यक्रम नहीं होने पाया क्योंकि उस दिन ओटावा के अधिकांश भागों में बिजली चले जाने के कारण सभागार बंद कर दिया गया। ताकि बिजली की खपत कम से कम हो। ऑफ़िस भी 3-4 दिनों को बंद कर दिए गए ताकि एयरकंडीशन, कंप्यूटर के न चलने से बिजली कम ख़र्च हो। घरों में बिजली न होने से जनजीवन मुश्किल में पड़ गया। 25 अगस्त का कार्यक्रम 2 सितंबर तक स्थगित कर दिया गया। हम तो 28 अगस्त को ही भारत आने वाले थे। अब क्या करें? समझ नहीं आ रहा था। ऐसे समय रश्मि जी ने हमें उबार लिया।
उन्होंने 26 अगस्त की शाम को एक छोटी सी काव्यगोष्ठी का अपने ही घर पर आयोजना किया देखा तो न था उन्हें अब तक पर उनकी मिलनसार प्रकृति सर चढ़कर बोलने लगी।
फोन पर ही उन्होंने बताया – भारत से संतोष गोयल भी आई हैं। मिलने पर शिकायत भरे स्वर में उन्होंने मीठा सा उलाहना दिया- “आप इतने दिनों से आईं, हम से बातें भी नहीं कीं। 2-3 कार्यक्रम रखते, दूसरों से आपको मिलवाते। वैसे भी भारत से आए कलाकारों और साहित्यकारों का हम सम्मान करते हैं।” सुनकर हर्ष हुआ और संतोष कर लिया कि चलो 4-5 लोगों से तो मिल ही लेंगे।
असल में हमने ही वहाँ की साहित्य मंडली में शामिल होने का समय गँवा दिया। पोती के जन्म की ख़ुशी में कुछ दिनों को हम अपने को ही भूल गए। वह जब तीन माह की हो गई तब पेंटिंग या कविता जैसे शौक़ों को खँगालने का मौक़ा मिला। वह नन्ही सी जान तो ख़ुद एक कविता है। यह कविता मैंने जब-जब पढ़ी। जीवन के रंग और भी चटकीले हो गए।
- क्रमश:
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