मैं महकती हुई मिट्टी हूँ

01-12-2019

मैं महकती हुई मिट्टी हूँ

ममता मालवीय 'अनामिका' (अंक: 145, दिसंबर प्रथम, 2019 में प्रकाशित)

मैं महकती हुई मिट्टी हूँ, 
किसी आँगन की;
मुझको दीवार बनाने पर, 
तुली है दुनिया।
कोमल हृदय, चंचल मन को;
बेड़िया पहनाने पर, 
तुली है दुनिया।


मै नयन लोभित, 
काजल हूँ किसी माँ का;
मुझको कलंक साबित करने पर, 
तुली है दुनिया।
में कैसे साबित करूँ,
अपने अस्तित्व को;
मुझे जड़ से मिटाने पर, 
तुली है दुनिया।


मै रंग बिखेरती तितली हूँ,
किसी पिता की;
मुझे बेरंग बनाने पर, 
तुली है दुनिया ।
कैसे ख़ुद की आन बचाऊँ,
मुझे बेनाम बनाने पर, 
तुली है दुनिया।


मैं मन हर्षित पुष्प हूँ, 
किसी भाई का;
मुझे मुट्ठी में दबाने 
लगी है दुनिया।
कैसे खुद की लाज बचाऊँ,
मेरी गरिमा की बाज़ार में, 
बोली लगाने लगी है दुनिया।

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