कर्तव्य पथ
ममता मालवीय 'अनामिका'बजती रह जाती है, घड़ी अब अलार्म की;
न जाने कौन सा जुनून मुझे,
अब पहले जगाने लगा है।
अनवरत चलकर भी, थकते नहीं अब पैर मेरे;
न जाने कौन सा नया आसमाँ,
मुझे अब बुलाने लगा है।
इन पराकाष्ठा की घड़ी पर, अब क्या लिखे ‘अनामिका’;
न जाने कौन सा नया इतिहास,
ईश्वर मुझसे लिखाने लगा है।
मगन अपनी धुन में, मैं बड़ चली कर्तव्यपथ पर;
मेरे किरदार पर जग सारा,
अब सिर झुकाने लगा है।
मुझे इल्म सिर्फ़ एक सत्य, मेहनत, प्रयत्न और विश्वास का;
दुआओं के सजदे से ही,
मेरा आज और कल मुस्कुराने लगा हैं।
2 टिप्पणियाँ
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हंमेशा सकारात्मक उर्जा भरी रचनाए बना कर लोगों में एक आत्मविश्वास जगाने का काम करती हो बहना ❤️
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कविता रचना में रुचि ।
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