एक ज़माना था

15-11-2022

एक ज़माना था

ममता मालवीय 'अनामिका' (अंक: 217, नवम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

नासमझी में बीत गया, 
वो भी एक ज़माना था। 
था चाव बड़ा तब होने का, 
सपनों का एक फ़साना था। 
 
पहचान नहीं थी दुनियादारी की, 
मासूम सा एक ज़माना था। 
था ख़्वाब आसमां छूने का
मंज़र वो भी आशिक़ाना था। 
 
बड़े हुए तो जाना अब, 
बचपन का एक ज़माना था। 
था साथ तब अपनों का
अपनेपन का एक तराना था। 
 
कहानियों सा लगता हैं अब, 
प्यारे क़िस्सो एक ज़माना था। 
था हर रंग तब त्यौहार का, 
हर दिन ख़ुशरंग और सुहाना था। 

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